रंगोत्सव दोहे
रंगोत्सव दोहे
रंग बसंती निकल गया, फागुन आई धार।
सारे रंग मिल बन रहे, होली की बौछार।।
बड़ी अनोखी रीत है, प्रेम पर्व की बात।
दिखते खुशियां बांटते, भीतर रख कर घात।।
मानस बिन रंग आत्मा, बे रंग सहती घात।
अंतर रंग ना मिल सका, किसे कहे जज़्बात।।
अंतर मिले सब पर्व है, करना बात यकीन।
सबमें एक ही आत्मा, दुनिया कहती तीन।।
माया मनसा बावली, करम भावे संगीन।
मन बे रंग सब रंग में, हो जीवन रंगीन।।
क्या बसंत क्या बहार, कितने सारे रंग।
होली भी फीकी रहे, बिन तुम्हारे संग।।
-रामअवतार स्वामी
(लेखक, व्याख्याता, परामर्शदाता)
ग्राम-दोबडियां, तह. व पोस्ट- उनियारा,
जिला-टोंक, राजस्थान 304024