Search for:

सावन के (बरखा) गीत

सावन के (बरखा) गीत

सर्व तपै जो रोहिणी,
सर्व तपै जो मूर
तपै जेठ की प्रतिपदा,
उपजै सातो तूर,
शुक्रवार की बादरी,
रही सनीचर छाय,
तो यों भाखै भड्डरी,
बरखा बरसै आय।

उठे काँकड़ा, फूली कास,
अब नाहिन बरखा की आस,
झबर झबर ना चली पुरवाई,
क्या जानै कब बरखा आई,
इन्द्रधनुष सतरंग नहीं हैं,
मेढक टर्र टर्र ना बोलें,
पक्षी प्यासे डाल डाल पर,
बरखा रानी अब तो आओ।

सावन आने वाला है,
बरखा रानी अब तो आओ,
हरियाली को तरस रही,
धरती माँ की प्यास बुझाओ,
नदियाँ नाले सुख रहे हैं,
उनमें है जल धार नहीं,
ताल तलैया झीलें सूखीं,
बरखा रानी अब तो आओ।

काले मेघा पानी दे,
पानी दे गुड़ धानी दे,
इंद्र देव ले आओ बादल,
बरसो सारे देश में,
बिजली चमके बादल गरजें,
रिमझिम बरसें खेत में,
गगरी ख़ाली गउवें प्यासी,
बरखा रानी अब तो आओ।

फसल बुआई हो ना पाई,
सूखा पड़ गया खेत में,
चूनर धानी खड़ी निहारे,
आसमान बरसे अंगारे,
कृषक लोगवा दोउ हाथ से,
करें प्रार्थना रेत में,
लोक मनौती झूठी ना हो,
बरखा रानी अब तो आओ ।

अब तक बारिस हो जानी थी,
लेकिन कैसी मुश्किल है,
इन्द्रधनुष ना देख सका कोई,
मेघ मल्हार न कोई गाये,
सावन के तो झूले पड़ गए,
सखियाँ झुलें बाग में,
गली गली में सभी मनावें,
बरखा रानी अब तो आओ।

मेघ मल्हार राग भी सोहें,
सोहें पावस के दिन पावन,
मघा, पूर्वा भी ना बरसे,
हथिया भी ना हुआ सुहावन,
भूरी मिट्टी, सोंधी ख़ुशबू,
हरियाली अब हो मनभावन,
हाथ जोड़ ‘आदित्य’ पुकारें,
बरखा रानी अब तो आओ।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required