भारत की होली
भारत की होली
चंद्र किरण का डोला लाया,पवन गंध अनमोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
सीता- राम अवध में खेलें,मर्यादित मन मीत।
मथुरा में राधा- कान्हा से, फागुन हुआ प्रतीत।।
गौरा माता के गौने पर,काशी ओढ़े भस्म।
लट्ठमार , फूलों की होली,बरसाने की रस्म।।
उत्तर में गीतों सरगम सुन, धरें स्वाँग तन खोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
मोर पंख सा है रंगीला, म्हारो राजस्थान।
वेश नार का नर हैं धरते, गींदड़ है पहचान।।
ढपली, ढोलक, मंजीरा बज,बजा रहें हैं चंग।
नभ में सतरंगी रेला बन,उड़तीं रहें पतंग।।
मरुथल की माटी भी रंगी,करती रहे किलोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
कामदेव का उर उपवन भी, चढ़ा धुलेटी भंग।
कृष्ण द्वारिका देवालय में ,फाल्गुन करता दंग।।
छाछ भरे मिट्टी के बर्तन, तोड़ें मिलकर प्राण।
नग्न पाँव से अंगारों पर, चलकर काटें त्राण।।
सागर तट गुजरात लगाता,नेह अबीर कपोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
श्याम भक्ति में लीन हुआ है, अपना आंध्र प्रदेश।
गोवा में नौकायें सजतीं,शिगमोत्सव परिवेश।।
रंगपंचमी रंग दलों से, महाराष्ट्र का जोड़।
हरियाणा के कोलहडे में,चुनरी रस्सी मोड़।।
जोशीला पंजाब मनाता,बहादुरी को तोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
आयु वर्ग को भेद रहा है,फगुनाई का जोश।
हर प्रदेश में पकवानों से, भरा थाल का कोश।।
लोकगीत की धुनें चहकतीं , ठुमरी, ध्रुपद धमार।
नवल वर्ष के अभिनंदन में, करे धरा अभिसार।।
सरस सुरीला बरस रसीला,अद्भुत रस का दोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण,रंग भरे त्यौहार।
धर्म जाति को विस्मृत करता, अचला का घर द्वार।।
राग- द्वेष को बिसरा देती, फगुवा भरी तरंग।
भस्मित होते अवगुण सारे,भर दे राख उमंग ।।
होली आई, होली आई,ताल बजाता ढोल।
भारत भू पर बादल बनकर, रंग निराले डोल।।
रचना उनियाल
बेंगलूरु