लघु कहानी: आस्था
लघु कहानी: आस्था
“और भई ममता! क्या तैयारी चल रही है तुम्हारी करवा चौथ की। इस बार तो बहू की पहली करवा चौथ है।” ऑफिस से आकर बैग मेज पर रखते हुए दीपक बोले।
“अच्छा जी! बहू की पहली करवा चौथ की बड़ी याद रही आपको। हमारी तो छब्बीस में से एक भी चौथ पर कभी कुछ न पूछा आपने।” ममता ने ठिठैली की।
“अच्छा! यह गलत बात है ममता। तुम्हारी हर करवा चौथ पर बिना कुछ कहे बिना कुछ पूछे साड़ी, श्रृंगार का सामान, मिठाई और यथाशक्ति चाँदी या सोने का जेवर भी लाता रहा हूँ। तुम मुझे लापरवाही का ताना नहीं दे सकतीं और इसका प्रमाण है यह।” दीपक के हाथ में एक मुलायम लाल मखमली डिब्बा था।
“वाह! कितना सुंदर कुंदन का सेट है।”ममता ने दीपक के हाथ से लगभग डिब्बा छीनते हुए खोला तो खुशी से झूम उठी।
“मेरे लिए?” उसने दीपक से पूछा।
“हाँ! तुम्हारे लिए। कितने सालों में तुम्हें सिर्फ छोटी-छोटी चीजें ही दे पाया हूँ। अब जिम्मेदारियाँ कुछ हल्की हो गई हैं तो इस बार तुम्हारे लिए यह।” दीपक ने हार ममता के गले में पहना दिया तो ममता की आँखें छलछला गईं।
“तुम रो क्यों रही हो?” दीपक ने पूछा।
“अभि करवा चौथ पर यहाँ है नहीं। उसे छुट्टी नहीं मिली। बहू कह रही है कि वह इन सब त्योहारों, व्रतों में विश्वास नहीं रखती। उसके मायके से भी करवा चौथ का बायना आ गया है। मैंने भी उसके लिए सुंदर सा लहंगा, श्रंगार का सामान,मिठाई और ये नये पायल- बिछिया और झुमके खरीदें हैं पर वह तो हाथों पर मेंहदी भी नहीं लगवाना चाहती। कहती है कि मम्मी जी जरुरी तो नहीं कि ये सब पूजा- व्रत किए जाएँ। यह सब तो ढकोसला है। अभि के पापा! क्या हमारे साथ ही यह सब परंपराएँ, रीति- रिवाज खत्म हो जाएँगे।” ममता की बात का दीपक के पास कोई जवाब नहीं था।
तभी बहू ने भोजन परोस दिया तो सब भोजन करने बैठ गए। सब मौन थे पर सबके मन में विचारों के बादल उमड़-घुमड़ रहे थे। कोई कुछ न बोला और सब सोने चले गए ।
रसोई में खटर-पटर की आवाज सुनकर ममता की नींद खुली। मोबाइल उठा कर देखा तो घड़ी में सवा चार बज रहे थे।ममता ने दीपक को जगाया।
“सुनो! कुछ आवाजें आ रही हैं। मुझे डर लग रहा है।”ममता ने कहा।
“कुछ नहीं है। आओ मेरे साथ।” दीपक में कहा और दोनों रसोई घर की तरफ जाने लगे। सहसा जो देखा तो दोनों की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं। बहू प्रणीता नए लहंगे में सारे साज-श्रंगार के साथ गहनों से लदी- फंदी, सिर पर चुनरी डाले, मिठाई की थाली सजा रही थी। हाथों की उंगलियों पर मेंहदी, हथेलियों पर सजे गोल गहरे भूरे चंदा के साथ इतनी सुंदर लग रही थी कि ममता ने उन्हें थाम कर चूम लिया।
“मम्मी जी! मैंने कह तो दिया कि यह सब ढकोसला है पर पापाजी और आपकी बातें मैंने सुन ली थीं ।सारी रात मेरे जेहन में आपकी बातें और अपनी मम्मी, दादी, चाची, बुआ और न जाने कितनी ही सुहागनों के करवा चौथ की छवियाँ आँखों में नाचतीं रहीं। बहुत चाहा कि न सोचूँ इन सबके बारे में पर शायद बचपन से मन में बसी इन सब छवियों और इनके विश्वास को नकार नहीं सकी। शायद आस्था किसी की कहने से नहीं अपने अंतर्मन में स्वयं ही जागृत होती है। मैं यह तो नहीं जानती कि इस व्रत के करने से अभि की आयु कितनी लंबी होगी पर यह मानती हूँ कि इन व्रतों और त्योहारों के माध्यम से सभी का प्रेम, स्नेह और आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। मैंने आज ऑफिस से भी छुट्टी ले ली है और आज हम दोनों मिलकर सारे व्यंजन बनाएँगे। पर इससे पहले आप फटाफट तैयार होकर आओ वरना अगर सरगी का समय निकल गया तो हमें पूरा दिन भूखा रहना पड़ेगा।” प्रणीता ने कहा तो ममता और दीपक ने उसके सिर पर हाथ रख दिया।
थोड़ी ही देर में दोनों सास-बहू सरगी खा रही थीं और वीडियो कॉल पर अभि की बातों की चपर-चपर जारी थी।
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ उत्तर प्रदेश