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तब है होली

तब है होली

दर्द हो जब मीठा सा,
और किसी यादों के रंग में,
जब भीग जाओ सर से पाँव तक।
बिन मताये मदिरा,
नशा जब चढ़े नैनन का।
……तब समझना होली है।

कच्चे रंग छूट जाते दो-चार दिन में,
देख लो साबुन लगाकर।
जीवन के अनुराग में,
आत्मरस हो फागुन के फाग में।
एक रंग पक्का प्रेम का,
जब डूबो…….
……तब समझना होली है।

जलाई जाये हर बुराई,
हरे-हरे पेड़ न कटे जलाने को।
पलाश के रंग हो पिचकारी में,
न कीचड़, गोबर, न केमिकल रंग,
प्राकृतिक रंग हो जब लगाने को।
…..तब समझना होली है।

रंगों की न कोई जाति न धरम,
भेद मिटाते ये गोरे और काले का।
ऐसे ही दिलों से नफरत मिट जाये,
मिट जाये भेदभाव सारा।
दुश्मन भी गले मिल जाय,
फैल जाये जब रंग भाईचारा,
……तब समझना होली है।

राजेश कुमार बंजारे
ग्राम पो. – मोहभट्ठा
जिला बलौदा बाजार- भाटापारा (छ.ग.)

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