त्रिकुटा रानी ! आई पाप मिटाने
त्रिकुटा रानी ! आई पाप मिटाने
जय हो, जय हो, तेरी त्रिकुटा रानी,
है तू ही हम सबकी माँ जोताॅंवाली।
रानी समृद्धि व राजा रत्नागर सागर की,
तू ही पुत्री, है नाम तेरा माँ वैष्णवी।
जग-कल्याण करने हेतु तू ही बनी,
हे माता वैष्णवी से हमारी वैष्णोदेवी।
पापी को नहीं तू आई है पाप मिटाने,
अपने स्नेहाशीष से भक्ति सबमें जगाने।
वैष्णो माता है महिमा तेरी अपरम्पार,
कष्ट हरे उसके जो भी आए तेरे द्वार।
सच्चे मन से जो भी तुझे लगाए माँ गुहार,
उसका आकर माँ तू करती है उद्धार।
हे त्रिकुटा रानी, तू ही सबकी है माता रानी,
हे मेहराँवाली, जोताॅंवाली, है तूही शेराँवाली,
हर संकट-विपदा से है तूही बचाने वाली।
कितनों का ही किया है माँ तूने उद्धार,
हे शेराँवाली करना तू मेरा भी बेड़ा पार।
हे त्रिकुटा रानी त्रिकुट पर्वत पर तेरा वास,
हर भक्त रखता माँ बस तुझपे ही आस।
त्रिकुटवासियों की रक्षा करी तूने पिशाचराज से,
नवस्वरूपों की कथा सुना बला टाली समाज से।
दस दिन गाँववालों ने किया संग तेरे जगराता,
तेरे सिवा भक्त तेरा किसी और दर न जाता।।
गूँज रहा ज़मीं-आकाश तेरी जय-जयकार से,
सबके पापों का नाश करती रहना संसार से।
माँ वैष्णोदेवी तेरे रहते होगा न कुछ अमंगल,
हो जहाँ अमंगल करती जाके वहाँ तू सब मंगल।
हे त्रिकुटा रानी लीलाएँ तेरी सबसे न्यारी,
लगती अपने भक्तों को माँ तू सबसे प्यारी।
जय हो, जय हो, तेरी जय हो त्रिकुटा रानी,
है तू ही हम सबकी माता जोताॅं वाली।
रौशनी अरोड़ा ‘रश्मि’