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संस्मरण- यह मेरे सपनों का भारत नहीं है

संस्मरण
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यह मेरे सपनों का भारत नहीं है
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— बात उन दिनों की है जब मैं शास.भारती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कांकेर में कक्षा नौवीं में पढ़ता था। विद्यालय का वार्षिक उत्सव होने को था।
वार्षिक उत्सव में मै फैंसी डैस में भाग लिया हुआ था। मेरे द्वारा फैंसी ड्रेस के लिए कोई एक विषय चुना जाना था। सो बचपन से ही मेरी गांधी जी के प्रति अटूट निष्ठा भक्ति होने की वजह से गांधी जी का रोल ही करने का निर्णय मैने किया।
फिर क्या था। मैं अपनी भूमिका गांधी की अदा कर सकूंँ, एक मित्र का सहयोग मैने इस हेतु लिया।
मुझे गाँधी जी की तरह दिखना था। गांधी जी के सिर पर बाल न होने से मुझे भी उस तरह चित्रित होना था। इसके लिए मेरे मित्र ने आटे का लेप मेरे सिर पर लगाया। बाल आटे के लेप में ढंक चुके थे। आँखो पर गोल ऐनक व कमर में घड़ी पहनी। आधी टाँग धोती पहने एक लंबी लाठी लेकर
मै मंच पर पहुँचा। मैने एक चक्कर मंच पर लगा वहाँ मौजूद माईक के पास आकर अपना वाक्य कहा – यह मेरे सपनों का भारत नहीं है। फिर क्या था। तालियों की गड़गड़ाहट से मंच गूँज उठा था।
जब प्रतियोगिता का परिणाम आया, तो मुझे सर्वाधिक अंक मिले थे और मैं प्रथम आया था।
जो वाक्य मैंने उस फैंसी ड्रेस में गांधी जी की भूमिका में कही थी कि “यह मेरे सपनों का भारत नहीं है”, आज भी वह वाक्य हर और गूंँज रहा है।
खासकर आज जब गाँधीजी होते तो यही तो कहते। जो मैने आज से लगभग 35 – 36 वर्ष पहले गाँधी जी की भूमिका में कहीं थी।
सचमुच यह वाक्य आज कितना चरितार्थ होता प्रकट हो रहा है।

— संतोष श्रीवास्तव “सम”
कांकेर छत्तीसगढ़

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