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आजा साँवरे

आजा साँवरे

बंसी मीठी बजा के रिझा न साँवरे
रैन होने लगी अब बुला न साँवरे।

चाँद भी आज निकला नहीं है गगन
दिल को मजबूर इतना बना न साँवरे।

लोग नजरे गढ़ाए रहे रात दिन
सबकी नजरों में मुझको चढ़ा न साँवरे।

घेर कर बैठी है सारी सखियाँ मुझे
कैसे आऊँ मैं छिप के बता न साँवरे।

तेरे रंग में रंगी सांवली हो गई
रंग उतरे नही यूँ लगा न साँवरे ।

गोपियों ने तुम्हें कैसे बस में किया
वो हुनर अब हमें भी सिखा न साँवरे।

भूल जाऊँगी जग और घर बार सब
प्रेम की वो अलख अब जगा न साँवरे।

वादा करके कभी श्याम आते नहीं
बात ये आज सबकी झूठा न साँवरे।

लोग पूछे हैं कि सुध बुध कहाँ खो गई
प्रीत का ये नशा और चढ़ा न साँवरे

हम पिए जा रहे हैं ग़मों का जहर
प्रेम प्याला हमें अब पिला न साँवरे।

मोह ममता की चादर बढ़ी जा रही
मुक्त सब चादरों से करा न साँवरे।

सारी दुनिया ने हमसे किनारा किया
हमको अपनी शरण में बुला न साँवरे।

मीत भी हो तुम्ही हो सखा भी तुम्ही
कोई रिश्ता तो हमसे निभा न साँवरे।

अब लुभाता नहीं हमको संसार ये
हमको दोनों जहाँ से छुड़ा न साँवरे।

बेमुरब्बत जमाने से नही है गिला
ठौर अपने चरण में दिला न साँवरे।

अपने अश्क़ो से तुमको ये पाती लिखी
पीर “ऊषा” कि अब तो मिटा न साँवरे।

ऊषा जैन “उर्वशी” कोलकाता

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