विश्व शांति दिवस पर विशेष
विश्व शांति दिवस पर विशेष
” शांति और युद्ध मानव मस्तिष्क की उपज है। युद्ध कभी युद्ध से नहीं , बल्कि शान्ति पूर्ण समझौते से ही समाप्त होते।”
‘ विश्व शांति दिवस’ प्रत्येक वर्ष २१ सितम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शान्ति और खुशी का एक आदर्श माना जाता है।
‘विश्व शांति दिवस ‘ मनाने का मुख्य उद्देश्य मानव, मानवता तथा ईश्वर प्रदत्त सृष्टि के जड़-चेतन सभी प्राणियों की रक्षा करना है। ‘विश्व शांति दिवस ‘ मुख्य रूप से सम्पूर्ण पृथ्वी पर शान्ति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। किन्तु यह काफी निराशा जनक है कि आज इंसान दिन प्रतिदिन इस शान्ति से दूर होता जा रहा है। अगर आज देखा जाय तो पृथ्वी,आकाश एवं सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा मानव समाज को इतना दूषित कर दिया है कि मानव की मानव के रूप में पहचान असंभव सा लगता है। इस पर एक शेर याद आता है –
*”इतना गिरना ठीक नहीं ,*
*इंसान तेरी पहचान * हो।*
*सृष्टि के हो श्रेष्ठ जीव ,*
*फिर भी तुझको भान न हो।।”*
सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम रखना आज़ संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में लिखा गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों को रोकने और शान्ति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म हुआ है।
शांति का संदेश दुनियां के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत एवं खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को समय-समय पर ‘शान्ति दूत’ के रूप में नियुक्त करता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने विश्व में शांति और अमन -चैन स्थापित करने के लिए पांच मूल मंत्र दिये थे, जिन्हें पंचशील सिद्धान्त भी कहा जाता है।
विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा आज साम्राज्यवादी आर्थिक एवं राजनीतिक चाल से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करके अपने सैन्य साजो सामान बेचकर अकूत धन कमाने के फिराक में लगे हुए हैं।यह एक ऐसा कड़वा सच है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है। आज सैन्य साजो सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के रूप में उभरा है। आतंकवाद को अलग -अलग स्तर पर फैला कर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इससे अकूत संपत्ति कमाते हैं। विकासशील देशों की आर्थिक स्थिति सैन्य साजो सामान खरीदने से दयनीय हो जाती है।
भारत हमेशा से ही अन्तर्राष्ट्रीय शांति के पक्ष में रहा। और वह “जीओ और जीने दो ।” तथा *”अहिंसा परमो धर्म:।”* के सिद्धांत पर चलने वाला देश है। महावीर, गौतमबुद्ध तथा महात्मा गांधी ने आजीवन विश्व शांति का संदेश पूरी दुनियां को देते रहे।
भारतीय संस्कृति “वसुधैव कुटुम्बकम्” के सिद्धांत पर चल कर न केवल हिन्दुस्तान के निवासियों को बल्कि सम्पूर्ण पृथ्वी को ही अपना परिवार मानता है, और उनके सुख-दुख की चिंता करता है।
भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है –
*”सर्वे भवन्तु सुखिन:,*
*सर्वे सन्तु निरामया।*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,*
*मा कश्चित् दुःख भाग भवेत्।।*
आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा , संस्कृति, पहनावे भिन्न -भिन्न हो सकते हैं। लेकिन विश्व कल्याण का मार्ग एक ही है। मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़ कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। हमें हर संभव शांति कायम करने का प्रयास करना चाहिए।यह उम्मीद की जा सकता है कि जल्दी ही वह दिन आयेगा जब हर तरफ शान्ति ही शान्ति होगी।
✍️ भगवान् दास शर्मा ‘प्रशांत’
शिक्षक सह साहित्यकार
इटावा उ.प्र.