अर्पण तर्पण और समर्पण जीवन जीने की महौषधि-हिमान्शु महाराज
अर्पण तर्पण और समर्पण जीवन जीने की महौषधि-हिमान्शु महाराज
लोरमी-धर्मजागरण समन्वय लोरमी के संयोजक व कथावाचक डाक्टर पंडित सत्यनारायण तिवारी हिमान्शु महाराज ने माता पिता तथा पूर्वजो के प्रति अगाध श्रद्धा को श्राद्ध पर्व की संज्ञा दी। उन्होने ईश्वर के प्रति अर्पण, पितरो के लिए तर्पण और परिवार तथा समाज के लिए समर्पण को ही जीवन जीने की महौषधि निरूपित किया। वैश्विक स्तर पर भारत की संस्कृति यथार्थ और आदर्श दोनो दृष्टि से अद्भुत, अकल्पनीय, अनुकरणीय और अनुसरणीय है।भारत का परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम का संस्कार इसे वैश्विक मानचित्र पर एक उत्कृष्ट स्थान पर रखने का कार्य करता है।भूखे को भोजन, प्यासे को पानी,वस्त्रहीन को वस्त्र और प्राणीमात्र के लिए करूणा, दया भारतीय संस्कृति की विशेषता है।यहा के प्रत्येक कार्यो मे भगवान श्रीराम, कृष्ण भक्त प्रह्लाद, ध्रुव, दिलीप रघु हरिश्चंद्र मोरध्वज मीरा सूर तुलसी कबीर रहीम रसखान जैसे भक्तो के आदर्श दृष्टिगोचर होते है।सती सीता गार्गी मैत्रेयी अरून्धती सावित्री जैसे अनंत सतिया भारतीय नारी के गौरव गाथा का निरंतर ज्ञान कराती है।अपने से ज्येष्ठ व श्रेष्ठ जनो का हार्दिक सम्मान भारतीय संस्कृति की विशेषता है।यहा का आध्यात्मिक ज्ञान पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण को जोड़कर रखता है।भारतीय लोकतंत्र विश्व का अद्वितीय अतुलनीय अनुपमेय तथा विश्व कल्याण और वसुधैव-कुटुम्बकम की बुनियाद पर आधारित है। यहा जीवित व्यक्ति का सम्मान तो होता है पन्द्रह दिन के पितृपक्ष और अन्यान्य अवसरो पर पूर्वजो का पूजन सनातन धर्म की विशेषता का प्रकटीकरण है।सनातन धर्म सार्वकालिक सार्वभौमिक व समसामयिक है।इसमे पूरे प्राणिमात्र के कल्याण की भावना निहित है।हमे अपने देश भारत और सनातनी हिन्दू भारतीय होने पर सदैव गर्व होना चाहिए।