*न्याय की दरकार
न्याय की दरकार
है भगवान का दर्जा जिसे,
उसको नहीं बख़्शा गया
बेखौफ अपराधी दिखा ,
सुरक्षा को ताक पे रखा गया।।
डॉक्टर का पेशा था जिसका,
काम था लोगों को बचाना।
लूट अस्मत क्यो मार डाला?
सीख रही थी जीवन बचाना।।
इन राक्षसों पर रहम क्यों?
जिसने न रहम सीखी कभी।
फांसी से कम ना सजा हो,
करते हैं हम आरजू सभी ।।
वो इंसान हो सकता नहीं है,
है छिपे कई भेड़िया इंसान में।
लिए पाशविक मनोव्रतियाँ,
मिले भीड़ और दरमियां में।।
नैतिकता का कितना पतन,
संज्ञान लें औ मन में विचारें ।
कृत्य ऐसा फिर कभी न हो,
आओ!उठ खड़े हो इंसाफ में ।।
अब न्याय में देरी न हो,
इंसाफ की दरकार हो।
हैवानियत ऐसी ना हो,
न इंसानियत लाचार हो।।
भगवान दास शर्मा ‘प्रशांत’
शिक्षक सह साहित्यकार
इटावा उत्तर प्रदेश