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भारत में भारतीय भाषाओं का विकास एवं सम्मान महावीर सरन जैन

भारत में भारतीय भाषाओं का विकास एवं सम्मान
महावीर सरन जैन

राजतंत्र में, प्रशासन की भाषा वह होती है जिसका प्रयोग राजा, महाराजा और रानी, महारानी करते हैं। लोकतंत्र में, ´राजभाषा’ शासक और जनता के बीच संवाद की माध्यम होती है। लोकतंत्र में, हमारे नेता चुनावों में जनता से जनता की भाषाओं में जनादेश प्राप्त करते हैं। वे भाषाएँ देश के प्रशासन की माध्यम होनी चाहिए एवं उनको लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं का माध्यम भी बनना चाहिए। भारत सरकार ने सिद्धांत के धरातल पर बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में, यह निर्णय ले लिया था जनतंत्र को सार्थक करने के लिए विभिन्न राज्यों में वहाँ की भाषा को तथा संघ के राजकार्य के लिए हिन्दी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। प्रशासकों को जनता के बीच काम करना है और जनता से संपर्क स्थापित करने के लिए उनकी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है। भाषा का ज्ञान है अथवा नहीं – इसका पता किस प्रकार चलेगा। लोक सेवा आयोग परीक्षाओं का संचालन किस उद्देश्य से करता है। यह किस प्रकार पता चलेगा कि परीक्षार्थी को जनता की भाषा का समुचित ज्ञान है अथवा नहीं। जब सरकारी अधिकारी बनने की इच्छा रखने वाले परीक्षार्थी लोक सेवा आयोग की परीक्षाएँ जनता के लिए बोधगम्य भाषाओं के माध्यम से देकर परीक्षा पास करेंगे तभी तो उनकी भाषिक दक्षता प्रमाणित होगी। उन भाषाओं के माध्यम से परीक्षा पास करने वाले सक्षम अधिकारी ही तो उन भाषाओं के माध्यम से प्रशासन चला पाएँगे तथा जनता से संवाद स्थापित कर सकेंगे।

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