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( गीत ) मुखरित मौन की आवाज

( गीत )
मुखरित मौन की आवाज

क्रूरता की चोटियों में
निर्धनों की रोटियों में
देख जंगल राज
गूंजती है आज,मुखरित मौन की आवाज

कल्पना की डोर चढ़कर
उड़ रहा मन ज्यों गगनचर
व्योम से झांके धरा पर
सृष्टि की मोहक कला पर
पुष्प सुरभित क्यारियों को
देखकर हरियालियों को
कर रहा है नाज
गूंजती है आज, मुखरित मौन की आवाज

फिर कहीं विष कुम्भ टूटा
दानवों का दम्भ फूटा
नारियों की दीनता पर
कापुरुष की हीनता पर
फैलकर दूषित हवाएं
रक्त रंजित हो घटाएं
हैं गिराती गाज
गूंजती है आज, मुखरित मौन की आवाज

मुह छुपाते मानवों पर
ठहठहाते दानवों पर
इस धरा की शीलता पर
क्षीण होती धीरता पर
ठोंक सीना तन गयी है
अब सियासत बन गयी है
सिरफिरों का ताज
गूंजती है आज, मुखरित मौन की आवाज

द्वेष के वातावरण में
छल कपट के व्याकरण में
नित्य नूतन काव्य रचने
विश्व कुल में प्राण भरने
एक पंकज लक्ष्य पाने
चल पड़ा है अब बचाने
भारती की लाज
गूंजती है आज, मुखरित मौन की आवाज

पंकज बुरहानपुरी

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