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मेरा स्कूल,कहा कुछ बदला हैं

मेरा स्कूल,कहा कुछ बदला हैं

सोचा क्यों न
फिर से स्कूल जाया जाए।
फिर से थोड़ा बचपन जिया जाए।
वर्षों बाद स्कूल(स्कूलपारा वाला)गया ।

जहा हमारी यादे है, खण्डहरों में तब्दील हो चुका है ।हाँ, पर कुछ नए बने जरूर है ,जो कि पक्के है तब खपरैल के हुआ करते थे___ पर वो बात नहीं है । मेरे जान-पहचान का भी कोई नहीं मिला , हॉ जिनके साथ पढे है उनमें से एक वही शिक्षिका बन गईं है जो कुछ समय के लिए बचपन में जाने (फ्लैशबैक )के लिए संजीवनी की तरह कार्य किया। शायद स्कूल कुछ कहना चाह रहा हो और उसे संवदिया मिल गया हो खैर….कैंपस में हरियाली जरूर है पर पुराने कक्षाओ ने टूटकर दीवारों का रूप ले लिया है।हमारे खेल-कूद के साक्षी रहे मैदान अब सिमट सा गया है। स्कूल बना कम,बिगड़ा ज्यादा नजर आया।
स्कूल के बाहर समोसे का हो या पान का ठेला लगभग वहां से विलुप्त है शायद इनकी जगह अब दुकानों ने ले लिया है वही सबके बीच लोकप्रिय रहे चना चरपटी अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष करते नजर आई,हो सकता है ऐसा दृश्य वर्तमान की मांग के कारण हो।

खैर बदलाव प्रकृति का नियम है,काफी कुछ बदल जाता हैं, पर कुछ चीजे नही बदलती जैसे प्रकृति (ऋत) का नियम ,सूर्य का उगना,दिन रात आदि आदि ..।

वैसी ही कुछ स्थायी नजर आया जो अब भी नही बदला है……

खिड़की से झाँकता मेरा बचपन उस मैदान में खेलते मेरे सहपाठीगण..वहां बिताए सहपाठियों व शिक्षकों के साथ हर पल। कक्षाओ के तरफ निहारने के तारतम्य में वक्त वही रुक जाता है। कक्षा में मानो सहपाठियों के साथ बैठे हैं और शिक्षक अपना शैक्षणिक कार्य मे मग्न हो।यकीन नही हो रहा हैं समय के साथ इतना बढ़ा हो गया हूं,आफिस देखने पर वृद्ध हो गए शिक्षक अभी बचपन वाले शिक्षक नजर आ रहे हैं कालचक्र वही रुक गया हैं । अभी स्पष्ट नजारे दिख रहे है मानो मेरा स्कूली जीवन पुनःजीवित हो गया हो .मेरा बचपन लौट आया हो….फिर वो बचपन दृश्यमान हो रहा हैं।

कहा कुछ बदला है …..बस मन की नजरों से देखो तो इस परिसर में हर तरफ,हर जगह अपना बचपन नजर आएगा।

त्रिभुवन साहू
बोडसरा जांजगीर छत्तीसगढ़

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