गुरु को नमन
गुरु को नमन
नमन मेरा सबसे प्रथम प्रभु को,
जग में जीवन प्राण दिया
गुरु मेरे वही दाता मेरे वही।
हर पल हर सांस देकर ,
सुख – दुःख में हाथ थामे,
पल – पल मुझे कृतार्थ किया ।
जग में जब आंखें खोली,
प्रथम रुदन था मेरा ,
कोमल थी काया मेरी,
सब कुछ था अनजाना
स्नेह -अमृत से सींच कर ,
माँ ने मुझको सहलाया ।
अपनी ममता की छांव में
उसने मुझे जीना सिखलाया।
त्याग , कर्म , ममता की मूरत ,
जीवन का मर्म हैं बतलाया ।
इस जीवन की मेरी प्रथम गुरु,
माँ तुझको मेरा प्रणाम / नमन।
स्नेह, प्रेम ,वात्सल्य भरा,
जब हाथ सिर पर पिता का ।
हर दुःख से महफूज किया,
नमन उस गुरु पिता को ,जिसने
जीवन का पाठ पढ़ा कर,
जग मे चलना है सिखलाया।
नमन उस गुरु को जिसने,
जीवन मंत्र हैं मुझे दिया ।
शिक्षा का दीप जला कर,
अंधकार को है दूर किया ।
राह दिखा अज्ञानता के तम से,
ज्ञान का प्रकाश हैं किया ।
नमन उन सभी आदरणीय को ,
जिनसे सीखा बहुत जीवन में।
नमन उन प्यारे मित्रों को भी,
सुख-दुख में जो हरपल साथ रहे ।
जीवन की ये बगिया महकाने,
फूल खुशियों के खिलाते रहे।
नमन उनको भी मेरा सादर हैं,
बने किसी न किसी रूप में वो गुरु
मिले सभी जो अपने – पराए बन।
जिनके विरोध ने मुझे संभल कर,
चलना ही नही निखरना भी सिखाया
नमन मेरे जीवन के गुरुओ को ।
नमन गुरु को नमन है
प्रा किंजल ईलेश मेहता
गोंदिया, महाराष्ट्र