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कविता

कविता

हे प्रभु आप आओ मेरे द्वार,
निर्मल प्रेम ज्योति जला रखा दरबार|
दया का हाथ रखना करना भव से पार,
दुनिया के सजीव अंशो के आप हो रखवार||

सारी सृष्टि आपकी मुट्ठी में हकदार,
हिला सकते हो पल भर में सारा संसार|
मिट्टी के पुतले आप हो प्रभु के किराये दार,
सत्कर्म करोगे नाम अमर करेंगे सरकार||

सूर-तुलसी धन्य आप थे अधार,
जिसे चुना आप उध्दार पालनहार|
मेरी डूबती नैया के आप है पतवार,
करूण निधि दया के सागर आपका उपकार||

द्रोपदी की लज्जा राखी कृष्णा अवतार,
घमण्डी रावण का अंत किया रामा अवतार|
भक्त प्रहलाद बचाये नरसिंह अवतार,
लवकेश अज्ञानी ज्ञान ज्योति दो प्रभु बुद्ध अवतार||

यहाँ फैली प्रभु आपकी माया अपार,
जो समझ गया उसका हुआ उद्धार|
जो नहीं समझा वह आयेगा भव में बार-बार,
हर एक साँस में लेना प्रभु नाम अनुराग||

आप ही हो प्रभु हमारे मार्गदार,
सदा ध्यान रखना भक्तों के पालनहार|
काँटो से गुजरा बना फूल सदाबहार,
हे पावन परमात्मा कोटि कोटि नमस्कार||

प्रभु विप्र आपका रास्ता रहा निहार,
दर्शन दो मोरे प्रभु आकर एक बार|
आपके सिवा नहीं मेरा कोई दो-चार,
सर्वदाता कभी किसी को करता नहीं निराश||

आपके पास कुबेर का है भंडार,
देने का आपके हाथ में है अधिकार|
मुझे नहीं चाहिए गिरिधर मालिक मेरे यार,
बस दर्शन दो श्री हरि दिल है बेकरार||

जल-थल-नभ में आपका है विस्तार,
हर गुलो में खुशबू है आप गुलजार|
हे प्रभ आप आओ मेरे द्वार,
निर्मल प्रेम ज्योति जला रखा दरबार||

पं० लवकेश तिवारी ‘कुशभवनपुरी’

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