श्री मार्कण्डेय पुराण की अमर कथा
श्री मार्कण्डेय पुराण की अमर कथा
भव के तारक जगत के ताप हरे!!!!
ऋद्धि-समृद्धि-सिद्धि से जन को तरे
उल्लसित-पुलकित हर जगत बिहरे!
श्री मार्कंडेय पुराण की अमर कथा
भव के तारक जगत के ताप हरे——
जब-जब देवों के मंडल में आफत पड़े!
असुरन के जे वाता मगन विचरे!!
जब-जब धर्म की हानि अधर्म बढ़े!
नभ नियति में दुर्जय क्रंदन चढ़े!!
माता दुर्गा के रुपवा में प्रगटे तभी
दनु-निशिचर कहानी आप तरे!
श्री मार्कंडेय पुराण की अमर कथा
भव के तारक जगत के ताप हरे ——-
जे कि निरत सदा जगवन्दन में!
अति शुद्ध हृदय अभिनंदन में!!
घर बाहर विराजे कि कानन में!
नदी,गह्वर,समंदर,गहन वन में!!
हर बाधा को माता है दूर करे
नवजीवन के अंकुर आप तरे!
श्री मार्कंडेय पुराण की अमर कथा
भव के तारक जगत के ताप हरे ——-
जग के मेला झमेला जे आज ईहां!
सुख दुखवा के मेला के साज ईहां!!
जड़-चेतन अकाज औ काज ईहां!
सब मैया से सज्जित राज ईहां!!
कहे ‘अंशु’ नमन करि जग जननी
आजु क्षरि दे वो माया जगत जे तारे!
श्री मार्कंडेय पुराण की अमर कथा
भव के तारक जगत के ताप हरे——
सुरेन्द्र सिंह ‘अंशु’ (सचिव)
अखिल भारतीय साहित्य परिषद
भोजपुर /आरा (बिहार)