सुंदरकांड रामचरितमानस का सिरमौर
सुंदरकांड रामचरितमानस का सिरमौर
सुंदरकांड संपूर्ण रामायण का हृदय है हृदय के स्पंदन के कारण ही संपूर्ण चराचर जगत जीवंत है साथ ही सभी रामायण के कांडों का आधार है l
लंका पर विजय प्राप्त करने का
*प्रबसि नगर कीजे सब काजा हृदय राखी कौशलपुर राजा*
का परिचायक है आज अचानक मेरे मन में यह उठा की सुंदरकांड प्रमुख क्यों है ?
इसे हम लोगों में से सभी प्राय पढ़ते रहते हैं जब कभी भी किसी तरह की परेशानी होती है तो केवल मन में विचार आता है कि सुंदरकांड ही पढ़ा जाए l विचार शिला पर अचानक ध्यान आया बहुत ध्यान से पढ़ने पर बहुत कुछ बातें इसे निकाल कर आई जो आप लोगों के बीच में साझा करना चाहूंगी l
बहुत अच्छा हुआ और ध्यान गया बालकांड में राम जी की बचपन की लीला अयोध्या कांड में कैकई के कारण राम जी को वनवास दशरथ जी की मृत्यु भरत जी का राम जी की पादुका रखकर राज्य किया जाना l अरण्यकांड में मां सीता जी का अपहरण रावण के द्वारा और जटायू का रावण से लड़ना यह बताना कि सीता जी का अपहरण रावण ने किया है और दक्षिण दिशा को गया है l
किष्किंधा कांड में राम जी की बाली से मित्रता और उत्तराखंड में सभी प्रश्नों के उत्तर समाहित पर इसके बीच में सुंदरकांड का प्रमुख होना
प्रथम हनुमान जी को उनके बल के बारे में पता चलना l
सीता जी का पता लगाना यह कितना बड़ा कार्य था श्री राम जी के लिए की सीता जी का पता लगाना उनके अंदर किस तरह की व्यथा है और कितनी चिंतित थी उसके बारे में विचारों का आदान-प्रदान सुंदरकांड में हुआ अशोक वाटिका में उनके दुख को को दूर करना रामचंद्र जी की मुंदरी देना सबसे प्रमुख राम जी का संदेश माता सीता जी को पहुंचाना यह बहुत ही बड़ी बात थी विरह अग्नि में राक्षसों के बीच में माता सीता जी थी और उनका धीरज बधाने वाला कोई नहीं था ,ऐसे में हनुमान जी पहुंचकर माता सीता को राम जी के बारे में और राम जी का वह संदेश हे माता आपके प्रेम से राम जी का प्रेम दुगना है और वह कह रहे हैं कि उन्हें अत्यंत दुख हैl पर वह
किससे कहें सिर्फ मेरा एक तत्व प्रेम है और जिसको मेरा मन जानता है परंतु वह मन सदा ही सीता तुम्हारे पास रहता है l इतना सुनना था की मां सीता अत्यंत मगन हो जाती हैं राम जी के संदेश में वह बात कहते हैं कि धीरज रखना ही अति उत्तम है धीरज से ही सब कुछ संभव होगाl
यह सुनकर माता सीता जी के मन में बहुत खुशी उत्पन्न होती है और उन्हें यह विश्वास हो जाता है ,की राम जी अति शीघ्र आकर उन्हें इस राक्षस रावण से छुड़ा कर ले जाएंगे l
दूसरी प्रमुख बात यह की हनुमान जी का ब्रह्मास्त्र में फसना, सरस्वती जो द्वारा बुद्धि देने पर हनुमान जी की पूंछ में कपड़ा लपेटकर अग्नि जलाना जिससे कि लंका में आग लगना l
यह बहुत बड़ा काम था अनेक राक्षस गण तो गर्भ में ही समाप्त हो गए थेl
राक्षस गण का कुल अत्यंत भयभीत हो गया था l
इसके बाद माता सीता का संदेश श्री राम जी को बताना की मां सीता ने कहा है
अनुज सहित प्रभु के चरणों में मेरा वंदन है और मेरे प्राण प्रभु के बिछड़ते ही नहीं निकले विरह की अग्नि समीर जैसी है जो सांसों के साथ अंदर प्रवेश करती है पूरे शरीर को जलाने के बाद बाहर निकलती है l
यह स्थिति उनकी बहुत विकट है, और अति शीघ्र में प्रभु राम आए और उन्हें यहां से मुक्त करें l
इस संदेश को सुनकर राम जी के कमल जैसे नेत्रों में अश्रु भर आए और कहने लगे की सही है ,सीता को बहुत कष्ट सहने पड़ रहे हैं उनके बिना कहे भी मैं समझ सकता हूं पर सीता के ऊपर इस तरह की विपत्ति क्यों आई l
इस पर हनुमान जी कहते हैं कि प्रभु भजन और सुमिरन से विपत्ति नहीं आती परंतु शत्रु राक्षस के क्षेत्र में यह संभव नहीं है, इसलिए यह विपत्ति आई है माता सीता बहुत दुखी हैं पर आपके संदेश को सुनकर बहुत सांत्वना मिली है और नवजीवन मिला है l
यह सुनकर राम जी बहुत प्रसन्न होते हैं और हनुमान जी से कहते हैं ,हे कपि मैं प्रेम के वश में हो गया हूं यह कह उन्होंने हनुमान जी को गले लगा लिया l
इधर शंकर जी ने अपने मन को सावधान किया और कहा कि है गौरा इस प्रसंग को जो सुनता है उसके बस में भगवान हो जाते हैं और मैं भी अपने इष्ट देव के आधीन हो गया l
मुझे आगे की कथा भी कहना है इसलिए मुझे सचेत होना होगा यह भी अत्यंत प्रमुख बात सुंदरकांड में निहित है l
सुंदरकांड में विभीषण का राम जी से मिलना आगे की जीत को प्रशस्त करने का सबसे बड़ा माध्यम बना l
लंका पहुंचाने हेतु सेतु का निर्माण का वर्णन भी इसी सुंदरकांड में निहित है, जिससे कि रावण के वध का सुनिश्चित होना ,हर दृष्टि दृष्टिकोण से सुंदरकांड सभी कांडों का सिरमौर बन गया l प्रमुख रूप से माता सीता और श्री राम जी के दुखों को दूर करने वाला कांड बना l
इसलिए आम जनों के बीच में सुंदरकांड ही प्रमुख है और इसका महत्व सभी सुधी जन अनुभव कर चुके हैं करते आ रहे हैं जय श्री राम
डॉ सरिता अग्निहोत्री ‘सजल’
मंडला मध्य प्रदेश