जय जगन्नाथ
जगन्नाथ हे महाप्रभु, मास द्वितीय अषाढ़।
रथयात्रा जगदीश के, बढ़ते प्रेम प्रगाढ़।
बढ़ते प्रेम प्रगाढ़, हरी सुजश बरनै लगे।
मधुकर मधुरस काढ़, मधुर मधुर बंशी बजे।
कह वैष्णव कवि राय, राधा माधो के लिए।
माया नहीं सताय, जगन्नाथ रस जो पिए।
लक्ष्मण वैष्णव कोरबा
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