बाँस की बाँसुरी में संगीत स्वर भरता
बाँस की बाँसुरी में संगीत स्वर भरता
प्यार की कोई रूपरेखा नहीं होती है,
वह तो प्रायः नैसर्गिक ही हो जाता है,
कभी धरती पर इंसान से हो जाता है,
व इंसान का भगवान से हो जाता है।
जब किसी की अनुभूति स्वयं से भी
अधिक अच्छी लगे तो वो प्रेम होता है,
प्रेम भरा मन तो सभी के पास होता है
पर मनोबल कम लोगों में होता है।
भलाई बुराई इंसान का क़र्म होता है,
बाँस के तीर से कोई घायल करता है,
और कोई उसी बाँस की बाँसुरी बना
करके उसमें संगीत के स्वर भरता है।
जब एक इंसान पूरे आत्मविश्वास
के साथ मंज़िल पर आगे बढ़ता है,
वही साधारण इंसान दुनिया और
सारे समाज को आइना दिखाता है।
असम्भव ऐसा शब्द है जो अक्सर
परियों की कहानी में पाया जाता है,
जब तक यह विश्वास नही होता है,
तब तक असम्भव सम्भव नहीं होता है।
टूटे गिरे पत्ते का अफ़सोस जतायेंगे,
तो हम मज़बूती नहीं दिखा पायेंगे,
मीलों यात्रा पग निकाल कर होती है,
हर क़दम आगे बढ़ाने से होती है।
जीवन यात्रा के लिये मन, मस्तिष्क
पूरी दृढ़ता से तैयार करना पड़ता है,
आदित्य तन स्वस्थ, आत्म विश्वास
हर प्रकार दृढ़प्रतिज्ञ रखना पड़ता है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ