(कहानी) आस्था —
(कहानी)
आस्था —
आज हनुमान जी के जन्मोत्सव का पावन पर्व है। शहर के सभी मन्दिरों में हनुमान जी का जन्मदिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। बाबा बजरंगबली के मनमोहक भजन — तेरे जैसा रामभक्त कोई हुआ न होगा मतवाला..
एक जरा सी बात पर आखिर सीना फाड़ दिखा डाला। ऐसे मनमोहक कर्ण प्रिय भजन भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त चिरंजीवी बाबा हनुमान जी के पूर्ण समर्पण और भक्ति भाव से ओत-प्रोत धर्म ध्वजा की उज्जवल कीर्ति का बखान कर रहे थे। संगीत मय स्वर लहरियों में गूँजते यह भजन आते-जाते श्रद्धालुओंं के कर्ण पटों में अमृत रस घोल रहें थे। आज मंदिरों में भोर से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था।
आज अपने कार्यालय के लिए निकलते समय लतिका ने भी बाबा हनुमान जी के मंदिर जाने का मन बना लिया था। अतः मंदिर पहुँचकर उसने स्कूटी स्टैंड पर खड़ी की और हनुमान बाबा के चरणों में निवेदित करने के लिए लड्डुओं का भोग प्रसाद और चोला चढ़ाने का सामान लेकर लतिका अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने लगी। आस्था और श्रद्धा के साथ बाबा के समीप पहुँचकर जैसे ही उसे बाबा के विग्रह दर्शन की एक झलक मिली तो उसका उदास हृदय प्रसन्नता से खिल उठा। जब पुजारी हनुमान बाबा को भोग लगा रहे थे तभी बाबा के चरणों में चढ़ा एक पुष्प उसके प्रसाद के ऊपर गिर पड़ा। यह मानो स्वयं हनुमान जी ने उसे आशीष दे दिया था। अतः लतिका ने वह पुष्प पुजारी जी से माँगकर अपने माथे से लगाया और अपने पर्स में रख लिया। तत्पश्चात पुजारी जी ने उसके मस्तक पर तिलक लगा कर बचा हुआ प्रसाद उसकी झोली में डाल दिया। उसने मन ही मन बाबा से अपने परिवार की खुशियों के लिए प्रार्थना की और विग्रह के सामने श्रद्धा और विश्वास से माथा टिकाकर अपने कार्यालय की ओर निकल पड़ी।
कार्यालय पहुँचकर लतिका अपनी सीट पर पहुँची और नियमित कामकाज में जुट गई। तभी कार्यालय सचिव की ओर से चपरासी उसके पास एक लिखित संदेश लेकर आया। संदेश पढ़कर नवयौवना लतिका के हृदय की धड़कनें बढ़ गई, उसका हृदय खुशियों की उमंगों से लबरेज हो गया। आज का सौभाग्य भरा दिन उसके जीवन में झोली भर खुशियाँ ले आया था। सचमुच, कई बरसों की कड़ी तपस्या के बाद आज उसे कार्यालय सचिव द्वारा अपनी नौकरी पक्की लगने का पत्र प्राप्त हुआ था। इसलिए अब वह हौसलें के पंखों से खोलकर शीघ्र ही घर जाना चाहती थी। घर पर उसके वृद्ध माता-पिता प्रतीक्षा कर रहे होंगे। बीमारी से पीड़ित अपंग पिता की देखभाल में उसकी मम्मी का पूरा दिन उनकी सेवा सुश्रुषा में निकल जाता था।
अपंग पिता की सेवा और घरेलू कामकाज में व्यस्त माता के साथ इरादों से मजबूत लतिका ने उनके कामकाज में हाथ भी बंटाया और अपनी कक्षा में अव्वल नंबर भी लाती रही। संघर्षों से भरी छोटी-सी उम्र में ही उसने अनेक कठिनाईयों का सामना किया था। जब कभी जीवन में निरन्तर आने वाली परेशानियों से वह घबरा जाती तो उसके पिता हमेशा उसकी हौसला अफजाई करते हुए उसे समझाते थे। वह कहते–
“बेटी लतिका–! तुम अपना काम पूरी लगन और निष्ठा से करती रहो। पुरुषार्थ और संतोष के साथ किए गए कार्य से तरक्की का रास्ता धीरे-धीरे मंजिल तक अवश्य ले जाता है। क्योंकि परिश्रम से आगे बढ़ने वालों के लिए कोई शार्टकट नहीं होता। अतः ईश्वर पर श्रद्धा और विश्वास रखो। एक न एक दिन तुम्हारे हृदय की पुकार उन तक जरुर पहुँचेगी। तब तुम देखोगी कि भाग्य ने तुम्हारे रास्ते स्वयं खोल दिए हैं।”
इसलिए अपने पिता की सिखाई गई सीख को उसने पल्लू में गाँठ के जैसे बाँध लिया था। हौसलें और धीरज के साथ वह अपने पिता की सीख पर सदैव अमल करते हुए काम करती रही। आज उसकी आस्था रंग ले आई थी। ईश्वर ने उसके मन की साध और पिता की मुराद पूरी कर दी थी। अतः काम समाप्त करके उत्साह के साथ उसने स्कूटी का रुख घर की ओर मोड़ दिया।
सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।