दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
क्या फिर नूर-ए-कशिश पर दिखा आफताब है
बड़े ही जतन से सम्भाला कम्बख्त ये दिल था
क्यूँ आज फिर उम्मीद के ज़ानिब से नासाज़ है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
उनसे कह दो दिल मेरा खेलने का सहूर नही है
मिलके फिर जुदा हो ये दस्तूर नही है
टूटे दिल का ए हुस्न क्या कोई जवाब है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
नही था हुज्जत तो क्यों दिल चुराया था
एक अपना ही था क्यूँ किया पराया था
उजाड़ कर दुनियाँ मेरी किस बात पर तेरा खिताब है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है
बड़ी ही मुस्किलों से सम्भाला था ये दिल अपना
बन्द आंखों मे दफना दिया था टूटा सपना
प्यार को आँसूओं के सैलाब मे बहा दिया
टूटे खवाबों की तामीर से खुद को जीना सिखा दिया
अब तो तारीख ही फना होने का मुकम्मल जवाब है
दिल फिर क्यूँ आज बहकने को बेताब है,,,,,,
संदीप सक्सेना
जबलपुर म प्र