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मामा जी की यादों में

मामा जी की यादों में

आप नहीं रहे इस जग में मामा जी,
*किंतु* आपकी कमी दिन-रात खलती है।
जब कभी मैं बीती बातों को दोहराता हूंँ,
तो मेरी आंँखें-भर आती *हैं* मामा जी।

पर *नियती* को कौन रोक सकता है भला,
जब कभी अररिया की चर्चा होती है तो,
*आपका* चेहरा मेरे सामने आ जाता है।
कहते हैं जग वाले माँ के बाद ग़र किसी को,
पीड़ा महसूस होती है तो वे होते हैं मामा जी।

क्योंकि माँ शब्द ममता का सागर होता है,
और जब मा शब्द को दो बार जोड़ दिया जाए,
तो मामा बन जाता है, सागर-गागर के समान।
आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा था और बहुत
कुछ सीखना बाकी रह गया है मामा जी।

ये तो मेरे लिए सिर्फ़ दुर्भाग्य की बात है,
अफसोस! मैं आपके लिए कुछ न कर सका।
काश आप अब-तक जीवित होते तो,
मेरी कामयाबी पर शबासी देते मामा जी।

मेरी पीठ थपथपाकर आशिर्वाद भी देते,
पर अफसोस! रब को ये मंज़ूर नहीं था।
मुझे आपसे जुदा कर रब ने ठीक नहीं किया।
आपके मार्गदर्शन से मैं जिस मुकाम पर हूँ,
उसका श्रेय आपको ही जाता है मामा जी।

आज आपकी प्रेरणा मेरे जीवन में रंग लाई है।
एक बार आपने मुझसे कहा था संदीप अररिया,
आते-जाते रहना पर आपके जाने के बाद,
अररिया की मिट्टी में वो खुश्बू नहीं रही,
जो की मुझको अपनी ओर खींच सके,
अब सूना लगने लगा है अररिया, मामा जी।

आज आपकी हर याद को मैं सहेज रहा हूंँ,
अपनी क़लम के जरिए आपकी यादों में,
आपका प्यारा इकलौता भांजा ‘संदीप’।
जो हरपल आपको याद करता है मामा जी।

*संदीप कुमार विश्वास*
रेणु गाँव,औराही-हिंगना
फारबिसगंज,अररिया-बिहार

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