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नारी शिक्षा

  1. नारी शिक्षा

अगर खोल देखें कि इतिहास में क्या, बेबस व लाचार ही थी वो नारी ।
चाहे गरीबी हो या हो अमीरी अनपढ़ रहेगी न अब कोई नारी ।।

पढ़ना उन्हें है अपनों के लिए , सपनों को पूरा करने के लिए ।
पीढ़ियों को संस्कार देने के लिए , नये वतन अब गढ़ने के लिए ।।

उनकी चाहत सब पूरी भी होगी , चाहे उजाला हो या हो अंधेरी ।
चाहे गरीबी हो या हो अमीरी, अनपढ़ रहेगी ना अब कोई नारी ।।

उनके भी ख्वाबों में पढ़ने सजा था, किंतु जुबां पे वो दबा हुआ था ।
चाहत थी उनकी कि शिक्षा वो पाए, बाबुल ने पहले ही शादी रचाए ।।

कोमल कलाई बढ़ी जिम्मेदारी ,सपने हुए चूर उनके हैं सारी ।
चाहे गरीबी हो या हो अमीरी , अनपढ़ रहेगी ना अब कोई नारी ।।

किंतु ललक थी कि पढ़ने का उनको, दिल की बातें कही अपने सनम को ।
उसने कहा मैं पढ़ाऊंगा तुमको , पुस्तक भी ला करके दूंगा मैं तुझको ।।

तुम मेरी अर्धांगिनी प्राणों से प्यारी, शादी किया है निभाऊंगा यारी ।
चाहे गरीबी हो या हो अमीरी, अनपढ़ रहेगी ना अब कोई नारी ।।

बसंत कुमार “ऋतुराज”
अभनपुर

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