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पवन झकोरे

पवन झकोरे

पवन झकोरे घूँघट चूमे,
अंग-अंग पुलकित हो जाए।
सौंधी गंध लिए आ जाओ,
जीवन ये सुरभित हो जाए।।

नैन तुम्हारे मधुशाला से ,
प्रेम सुधा ये छलकाते हैं।
कामदेव सी सूरत मनहर,
बाँकी चितवन ये भाते हैं ।
आलिंगन में भर लो मुझको,
मन मेरा हर्षित हो जाए ।

पवन झकोरे घूँघट चूमे,
अंग -अंग पुलकित हो जाए।।

भावों के इस नंदन वन में,
प्रीत सुहानी पावन पलती।
मन हिरणी सा भागे मेरा,
विरह -व्यथा में छलिया जलती।।
गदराये यौवन पर साजन,
चन्द्र- कमल मोहित हो जाए।

पवन झकोरे घूँघट चूमे,
अंग -अंग पुलकित हो जाए।।

मौन अधर नैना अकुलाते,
प्रेम -वलय भी है मुरझाई।
आशातुर सौगातों को नित,
मचले यौवन की तरुणाई ।।
बौराई मधुरस पीने को ,
मन मधुकर गुंजित हो जाए।

पवन झकोरे घूँघट चूमे,
अंग -अंग पुलकित हो जाए।।

मीना भट्ट सिद्धार्थ

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