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“पौराणिक विषय पर सृजन करते हुए लेखक को उस युग के अनुरूप भारतीय समाज और अध्यात्म को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए।” डा. उमेश कुमार सिंह

“पौराणिक विषय पर सृजन करते हुए लेखक को उस युग के अनुरूप भारतीय समाज और अध्यात्म को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए।” डा. उमेश कुमार सिंह

शहडोल – दिनांक 27.6.2024 को गद्य प्रवाह समूह की आनलाइन गूगल गोष्ठी में सुश्री संतोष श्रीवास्तव जी के उपन्यास “कर्म से तपोवन” की परिचर्चा बहुत ही गरिमामय रही और सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई।
सुश्री शेफालिका श्रीवास्तव जी के कुशल समायोजन में सुश्री अपराजिता शर्मा जी ने सधे हुए शब्दों में संचालन किया। सुश्री प्रमदा ठाकुर ने सरस्वती वंदना करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया तत्पश्चात गद्य प्रवाह समूह की अध्यक्ष सुश्री मधूलिका श्रीवास्तव जी ने गद्य प्रवाह समूह की संक्षिप्त दैनंदिनी का परिचय देते हुए आज के अध्यक्ष आदरणीय उमेश कुमार सिंह के साथ सभी प्रबुद्ध साहित्यकार भाइयों एवं बहनों का स्वागत किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में सुश्री जनक कुमारी सिंह बघेल ने पुस्तक परिचर्चा पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए संतोष श्रीवास्तव जी को उनके कृति के लिए बधाई दिया और कहा – “यह उपन्यास पौराणिक पृष्ठभूमि को लेकर लिखा गया है, अतः इसकी परिचर्चा के लिए एक, डेढ़ घंटे बहुत कम होंगे, फिर भी कुछ परतें तो अवश्य ही खुलेंगी।”
संतोष श्रीवास्तव जी ने अपने उपन्यास का पहला अध्याय संक्षेप में पढ़कर सुनाया और श्रोताओं को उसका सारांश भी बताया।
उपन्यास के समीक्षक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी और सुश्री विनीता राहुरिकर जी ने किया।
अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी में विवेक रंजन श्रीवास्तव जी ने कहा – “उपन्यास माधवी की मनोदशा का वर्णन करते हुए उसके आँचल के दूध पर लिखा जाना चाहिए था, जो आँचल में ही सूख गया और चार चक्रवर्ती सम्राट बनने वाले बच्चों की माँ होते हुए भी मातृत्व सुख से वंचित रह गई।”
“उपन्यास में श्वेत अश्वों का कान काला होने का जो वर्णन किया गया है जो सम्पूर्ण पृथ्वी पर भी दुर्लभ प्रजाति का है, वह हो सकता है महाभारत में कोई शूत्र वाक्य भी हो। विनीता राहुरिकर जी ने संतोष श्रीवास्तव जी के उपन्यास में मोहक प्राकृतिक चित्रण की सराहना करते हुए कहा – “जो स्त्री स्वयं का सम्मान नहीं करती, उसका सम्मान कोई नहीं करता। माधवी ने स्वयं अपना सम्मान नहीं किया। यही कारण है कि गालव ऋषि के अतिरिक्त तीनों राजाओं के साथ स्वयं विश्वामित्र भी उसका मान नहीं रख सके।”
समीक्षकों के अतिरिक्त वीना सिन्हा, और सुरेश पटवा जी ने भी अपने – अपने विचार रखे।
सुरेश पटवा जी ने पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी का उदाहरण देते हुए कहा – “महाभारत काल में स्त्री, पुरुष में सामाजिक समरसता की प्रथा थी अतः माधवी की कहानी में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। ”
अध्यक्षीय उद्बोधन में डा.उमेश कुमार सिंह ने कहा – “जब हम किसी पौराणिक विषय वस्तु को लेकर कोई साहित्य सृजन करते हैं तो हमें उस काल और युग की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय दर्शन के अनुरूप अध्यात्मिक होकर सोचना और लिखना चाहिए।”
अंत में उपन्यास की खुली परतों पर चर्चा करते हुए संतोष श्रीवास्तव जी ने आभार व्यक्त किया और गोष्ठी का समापन किया।

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