( आलेख ) संचार क्रांति का हिंदी साहित्य पर प्रभाव — प्रस्तावना —
( आलेख )
संचार क्रांति का हिंदी साहित्य पर प्रभाव —
प्रस्तावना —
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इस धरा-धाम पर जन्में प्रत्येक प्राणी को जीवन यापन करने एवं उन्नति करने के लिए परिवार का, समाज का सहयोग मिला है। जन्म लेने के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति इस सामूहिक समाज का अभिन्न अंग बन जाता है। अतः मनुष्य सबके साथ समूह में आपस में मिलकर साथ रहने, खाने-पीने, हँसने-बोलने की और सम्भाषण करने अर्थात् अपने मन की बात कहने की आजादी चाहता है। यह कार्य संचार के माध्यम से मुमकिन होता है।
संचार का अर्थ —
हृदय भाव से निकलने वाले शब्दों को आपस में सांझा करना ही संचार कहलाता है। जब किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति से अपने मन की बात कहनी होती है, तब उसके वह भाव, विचार एवं उसके दृष्टिकोण का प्रचार-प्रसार वास्तव में संचार कहलाता है। आजकल के आधुनिक युग में संचार क्रांति व्यक्ति के मानसिक, आर्थिक-सामाजिक विकास में अत्यंत सहायक सिद्ध हो रही है।
सच में तो, संचार क्रांति इस सदी की महत्वपूर्ण घटना है। आधुनिक काल में संचार क्रांति का अद्भुत एवं अभूतपूर्व विकास हुआ है। संचार क्रांति ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों को मजबूती प्रदान की है। विश्व के किसी भी कोने में जब कोई घटना घटित होती है, तो पलक झपकते ही जनसंचार के माध्यम से कोने-कोने में उस घटना का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार हो जाता है।
आधुनिक संचार क्रांति के माध्यम
पुरातन काल में जब व्यक्ति के पास जीवन यापन हेतु कृषि कार्य के अलावा उद्योग-धन्धें लगाने, या व्यापार करने और कहीं आने-जाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। तब मनुष्य का जीवन अनेक कठिनाईयों से भरपूर था। चिट्ठी-पत्री जैसे सुख-दुख के लिखित समाचार, एक दूसरे की खोज-खबर लेने- देने में महीनों लगते थे। किंतु आज.. आज.. विज्ञान के उन्नति करने से आधुनिक युग के संचार साधनों के कारण सभी कार्य अति सरल एवं सुगम हो गए हैं। अब एक टेलीफोन कॉल करके विदेश में बैठे अपने बच्चों या किसी अन्य रिश्तेदार से वीडियो कॉल पर आमने-सामने आपसी बातचीत की जा सकती है। आधुनिक युग में संचार क्रांति के अनेकों माध्यम होते हैं। इन आधुनिक उपकरणों में जनसंचार के मुख्य माध्यम- जैसे कि इंटरनेट नेटवर्क, साफ्टवेयर, कम्प्यूटर, दूरदर्शन,यू ट्यूब, मोबाइल, फेसबुक लाइव, वाट्स एप, आकाशवाणी,एफ एम चैनल, आडियो-वीडियो द्वारा किसी भी ख्यातिलब्ध व्यक्तित्व के श्रेष्ठ गुणों और उसके जन समाज के लिए उपयोगी कार्यों का प्रचार-प्रसार किया बड़ी सरलता से किया जा सकता है। यह सब संचार क्रिया के माध्यम से ही सम्भव होता है।
संचार क्रांति के लाभ —
संचार क्रांति के कारण आज हम विश्व की गतिविधियों को, किसी देश के क्रिया-कलापों को पलक झपकते ही देख सकते हैं। आज के समय में संचार क्रांति ने प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र- पत्रिकाओं के कार्य क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। जहाँ पहले समय में पढ़ने के शौकीन पाठक-पाठिकाएँ पत्र-पत्रिकाओं के मासिक प्रकाशन के बाद अपनी प्रति के घर आने की प्रतीक्षा किया करते थे। अब इंटरनेट के माध्यम से पाँच-सात इंच की स्क्रीन पर सब कुछ उनके मोबाइल पर ही मिल जाता है। अब इंटरनेट ऑन करके क्लिक करते ही हजारों बेब पेज हमारी आँखों के सामने खुल जाते हैं। इंटरनेट खोज इंजन, अर्थात् गूगल गुरु बाबा के नाम से प्रसिद्ध इस मशहूर साफ्टवेयर का तो क्या ही कहना? मसलन.. आर्थिक-सामाजिक , स्वास्थ्य संबंधी, आध्यात्मिक, ज्ञान-विज्ञान, खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई,फिल्मी जगत आदि..आदि ..आपको कुछ भी जानकारी चाहिए, बस.. इंटरनेट खोलकर गूगल पर नाम लिखकर डालो.., तुरंत सारी जानकारी वहाँ पर उपलब्ध होती है।
सच में, एक से बढ़कर एक नवीन तकनीकी ज्ञान और शिक्षा का सागर गूगल बाबा के रूप में हमारे मध्य विराजमान है।
संचार के माध्यम से समाज के किसी भी राष्ट्रीय- अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित कवि/ लेखक/ साहित्यकार अथवा अन्य किसी क्षेत्र विशेष में नामचीन, उम्दा व्यक्तित्व के साक्षात्कार को, उनके आडियो-वीडियो को मिनटों, सैंकिडों में प्रचारित-प्रसारित किया जा सकता है। सफल लोगों की सफलता के नवीन आयामों को साक्षात्कार के द्वारा प्रसारित करके श्रेष्ठ व्यक्तित्व से प्रभावित जनसमूह को और भी अच्छी तरह से दिशा निर्देश दिया जा सकता है। गूगल आनलाइन कवि सम्मेलन के द्वारा घर बैठे एक- दूसरे की कविताओं को सुनने- सुनाने का आनंद लिया जा सकता है। सम्पादक महोदय को वाट्सएप के माध्यम से आज भेजी गई रचना अगले दिन के समाचारपत्र में प्रकाशित हो जाती है। स्वरचित रचनाओं के सांझा संकलनों का प्रकाशन पाठक, लेखक और प्रकाशक तीनों को खूब आकर्षित कर रहा है। अधिक क्या कहें – आज संचार क्रांति ने प्रबुद्ध वर्ग के साहित्यिक समाज का स्वरूप भी बदल डाला है।
संचार क्रांति से साहित्य क्षेत्र में हानि —
आज हमारा समाज संचार क्रांति के ऐसे नवीन दौर से गुजर रहा है, जहाँ पाठक उपभोक्ता न होकर उपभोग की वस्तु बन गया है। आज लेखक, कवियों और प्रकाशकों की बाढ़ आ गई है। वाट्स एप के माध्यम से अनेकों साहित्यिक संस्थाओं का बोलबाला बढ़ गया है। जैसे कि हाथ की पाँचों उंगलियाँ समान नहीं होती, उसी प्रकार धन-भोग की लिप्सा-लालसा में कुछ संस्थाएँ आधुनिक युगीन साहित्यकारों का मानसिक एवं आर्थिक शोषण कर रही हैं। इसमें कुछ संस्थाओं द्वारा लेखक/कवि वर्ग को सांझा संकलन में उसकी रचना प्रकाशित कराने का लालच देकर आसानी से दो-चार हजार रुपए ऐंठ लिए जाते हैं।
कुछ साहित्यिक संस्थाएँ मात्र फोटो खिंचाने और अपना नाम दर्ज कराने के लिए इस क्षेत्र में आती है, फिर कुछ समय बाद गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाती हैं। ऐसा भ्रमित आचरण करके वे स्वयं के साथ-साथ समाज को भी धोखा देती है। और संचार साधनों का दुरुपयोग करती हैं। पत्र-पत्रिकाएँ इंटरनेट पर उपलब्ध होने के कारण अब पाठक वर्ग की रुचि पुस्तकें खरीद कर पढ़ने में नहीं है। जिसके कारण बहुत सी पत्र-पत्रिकाएं बंद होने के कगार पर हैं। मैंने स्वयं ऐसा देखा है कि, जिन रचनाकारों को भाषा ज्ञान की व्याकरणिक समझ भी नहीं होती। ऐसे में वे स्वयं को सीना ठोंककर राष्ट्रीय कवि घोषित करके फख्र महसूस करते रहते हैं।
उपसंहार —
जिस प्रकार किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। उसी प्रकार संचार क्रांति के भी कुछ फायदे और कुछ नुकसान हैं। इसलिए बुद्धिजीवी मनुष्य को परिस्थितियों के अनुसार संतुलन स्थापित करना चाहिए। संचार साधनों का सोच-समझकर उपयोग करना बुरी बात नहीं है। लेकिन अति हमेशा बुरी होती है। इसलिए आज आवश्यकता है कि स्वयं के विकास एवं देश और समाज की उन्नति में योगदान देने के लिए हमें संचार साधनों को खुले मन से अपनाना चाहिए।
सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।