गौ माता की करुण पुकार
गौ माता की करुण पुकार
आज कन्हैया, तेरी गैया, जाती कत्लेख़ाने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
सतयुग, त्रेता, द्वापर में भी, घर-घर पूजी जाती थी ।
ऋषियों-मुनियों के गुरुकुल में, ही सच्चा सुख पाती थी ।।
बीते दिन ही अच्छे थे, क्या कह दूं नए ज़माने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
भारत की सुरधाम धरा पर, मुझ पर हो रहे अत्याचार ।
मेरी पीड़ा नहीं समझते, खुलेआम करते व्यापार ।।
हरदम ही रहते हैं तत्पर, मौत के मुंह पहुंचाने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
पैसों की लालच की ख़ातिर, मुझको बेचा जाता है ।
भूखा रखकर, मारपीट कर, माँस को नोचा जाता है ।।
टुकड़े करते, टूटे पड़ते, उसी माँस को खाने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
मैंने हर दिन भेदभाव बिन, बिना दाम उपकार किए ।
दूध, दही, घी, मूत्र औ’ गोबर, पंचगव्य से द्रव दिये ।।
मेरे वंश की वृद्धि, अवसर देगी, खूब कमाने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
जितना भोजन करती, उससे ज़्यादा वापस करती हूँ ।
मेरी सेवा करने वाले के, सारे दुख हरती हूँ ।।
कुछ लोगों ने ठान लिया है मेरा वंश मिटाने को ।
दर्द भरी आवाज़ ही अब तो, रह गई तुझे सुनाने को ।।
अमर सिंह वर्मा, जबलपुर