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ग़ज़ल

ग़ज़ल

मरने वाले को पता है ज़िंदगी क्या चीज़ है
साथ सबका छूटने की बेहिसी क्या चीज़ है//

रात अँधेरी अगर हो पूछिए फिर चाँद से
साथ होकर भी दिखे ना चाँदनी क्या चीज़ है//

प्यार सच्चा जो करें वो जिस्म को छूते नहीं
जानते हैं रूह की पाक़ीज़गी क्या चीज़ है//

दर्द मेरा अश्क़ उसके, प्यार इतना जो करे
साँस उस पर हर लुटा दूँ इक ख़ुशी क्या चीज़ है//

हर किसी को एक ही पलड़े में जो है तौलता
ए ख़ुदाया ख़ूब तेरी सादगी क्या चीज है//

जब भरोसा अपने ही करते नहीं हो आप पर
बोलिए फिर जीस्त में उससे बुरी क्या चीज़ है//

मिल गया जिसको सभी कुछ कद्र ‘ऋतु’ करता नहीं
रेत के टीलों से पूछो तिश्नगी क्या चीज है//

सुखनवर
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ उत्तर प्रदेश

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