वीर रानी दुर्गावती
वीर रानी दुर्गावती
मातृ भूमि हित मर मिटी, गोड़वाना की रानी थी।
मान सम्मान हित लिखी, खून से सनी कहानी थी।।
कीर्तिराय की बेटी, दलपत शाह की रानी थी।
प्रजा की रानी प्यारी, प्रियम्बा दुर्गा भवानी थी।।
दलपत स्वर्ग सिधारे, विधवा हुई तब रानी थी।
वीर पुत्र को गद्दी दे, तब सत्ता खुद संभाली थी।।
सुंदर और कमजोर ,देख बाज* का मन डोला था।
सेना ले चढ़ आया, दुर्गा ने हर हर बोला था।।
तीन बार हारा दुर्गा से, फिर पलट नहीं पाया था।
देख ताकत दुर्गा की, हर दुश्मन भी थर्राया था।।
जीत मालवा अकबर ने,गोड़वाना लक्ष्य किया था।
रानी को संदेश दे ,गज, आधार, तलब किया था।।
फुफकार उठी रानी, न दूं गज आधार सिंह को।
जान ले लूं जां दे दूं, ना दूं मैं प्रिय रत्नधन को।।
सुन दो टूक अकबर ने, आक्रमण का विचार किया।
हासिल करों गोडवाना, आसिफ को समाचार दीया।।
चला युद्ध बस दो दिवस,रानी ने विजय पाई थी।
किंतु बिके सरदार के, कारण दूजे दिन हारी थी।।
घायल हुआ वीर सिंह, लोट जाओ आदेश दिया।
घायल सिंहनि टूट पड़ी, दुश्मन को खदेड़ दिया।।
एक तीर लगा गले में, गिरी जमीन पर रानी थी।
उठ संभली खड़ी हुई, याद दिलाई नानी थी।।
दुश्मन से घिरी रानी, सम्मान हित यह विचार किया।
घोपू कटार निज कर से, वीर मृत्यु का वरण किया।।
धन्य धन्य रानी दुर्गा, सब जन तेरे गुण गाते हैं।
जां वारी मातृभूमि पर, तुझे सिख मनहर पाते है।।
गीतकार मनोहर सिंह चौहान मधुकर