Search for:

हिंदी में ही बात कहूँगा

हिंदी में ही बात कहूँगा

हिंदी में ही बात कहूँगा
हिंद का मैं हूँ निवासी
अपने ही घर में
हुई जो आप्रवासी
नाज है उस पर
उसी को मैं गहूँगा ।
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

थोड़ा सा जो पढ़ जाते हैं
चंद सीढियाँ चढ़ जाते हैं
वो हिंदी को छोड़
अंग्रेजी की गोद में पड़ जाते हैं।
मैं हिंदी का बेटा हूँ
साच को नहींआच कहूँगा ।
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

ओ इंगलिश के दीवानों
इंगलिश में सोचो तो जानूं
ट्रांसलेट कर मेरी हिंदी
मुझसे ही करते हो म्याउँ।
चाचा फूफा मौसा सबको
कैसे अंकल यार कहूँगा ।
हिंदी में ही बात कहूंगा ।

किंकर्तव्यविमूढ़ देखकर
रह गया इंगलिश वाला
हिन्दी वाला बिना पिए ही
लिख देता मधुशाला
हिन्दी से रससिक्त हुआ हूँ
हिन्दी को ही हृदय धरुँगा ।
हिन्दी में ही बात कहूँगा ॥

ना जाने किस वर्ड का कौन सा
लेटर हो जाय चुप्पा
और उसी अंग्रेजी पर
तुम हुए फूल कर कुप्पा
पाँच ही स्वर पर इतराते
मैं ग्यारह के साथ रहूँगा
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

21 व्यंजन हैं तुम्हारे
मेरे हैं इकतालिस
तेरी बड़ी और छोटी
मेरे अक्षर अक्षर मोती
हिंदी के सम्मुख अंग्रेजी
की क्या हैऔकात कहूँगा ।
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

हिंदी से अंग्रेजी में
जो रोज बदलते गियर
कालिदास को कहते हैं
हिन्दी का शेक्सपियर
मैं तो शेक्सपियर को
इंगलिश का कालीदास कहूँगा
हिंदी में हो बात कहूंगा ।

सूर, तुलसी , रहीम कबीर
जैसे हिंदी के दास
चँवर डुलाती मीरा
करते कालीदास अरदास
हिंदी की धारा में मैं भी
बस इनके ही साथ बहूँगा ।
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

हिन्दी हाँ हिन्दी जिसको
अपनों ने किया पराया
अंग्रेजी का गुण गाता
जो है हिन्दी का जाया
हिन्दी का बेटा हूँ मैं तो
हिन्दी को ही मात कहूँगा ।
हिन्दी में ही बात कहूँगा । ।

हर भाषा को दिया मान
सबका ही सम्मान किया
पर बोलो किस भाषा ने
हमको यथेष्ट स्थान दिया
हिन्दी वाला हूँ तो हिन्दी
के ही सिर पर ताज धरूंगा ।
हिन्दी में ही बात कहूँगा । ।

हिंदी की जगह है भावों में
बाकी सब रहे किताबों में
हम पढ़ें लाख भाषाएँ पर
हिन्दी ही आए ख्वाबों में
हिन्दी में रोना गाना हँसना
हिन्दी में ही ठाट करूँगा
हिन्दी में ही बात कहूँगा ।

अ से अनपढ़ से शुरू हो
ज्ञ से ज्ञानी हमें बनाती
मौन नहीं हैं कहीं शब्द
बिंदी भी आवाज लगाती
अक्षर अक्षर मंत्र है इसका
इसी मंत्र का जाप करूँगा
हिन्दी में ही बात कहूँगा ।

हिंदी सी प्रायोगिक जग में
कोई न दूजी भाषा
तत्सम तद्भव देशज और
विदेशज चार खुला दरवाजा
आये कोई भी भाषा से
स्वागत लेकर साथ करूंगा
हिन्दी में ही बात कहूँगा ।

ब्रज अवधी बुंदेली मैथली
खोरठा भोजपुरी और मगही
नागपुरी कुडुख कुरमाली
और इसी में है संथाली
जो लिखते वो ही पढ़ते हैं
और सरल क्या तात करूंगा
हिंदी में ही बात कहूँगा ।

पीयूष पाणि
झुमरी तिलैया, कोडरमा
झारखण्ड ।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required