पर्यावरण विदोहन
पर्यावरण विदोहन
रोप लो पौध को, सुख मिलेगा सदा,
खिल उठेगी जमीं, दुख कटेगा सदा।
आप ही आप में, सोच लेना जरा,
सांस की आश में, वन खिलेगा सदा।।
अपने जीवन के आधार वृक्ष हैं
अपनी सांसों के आकार वृक्ष हैं।
वृक्ष है तो है जीवन की है हर खुशि,
जिन्दगी में प्राण के प्रवाह वृक्ष हैं।।
प्रदूषण के राज जग में सफल हो गया,
स्वार्थी हम बने तो हृदय विफल हो गया।
निजी स्वार्थ में लीन बंद आँखें हुई,
खुद की करनी के आगे विचल हो गया।।
वातावरण पर ये घात किस ने किया,
जल जमीं जंगल आघात किस ने किया।
किसने हैं अब रचाये विदोहन यहाँ,
कौन विष घोलता है जन्मजात यहाँ।।
धधकती ज्वाला जलायेगी जान देखना,
सिकुड़ती नदियाँ उठायेगी प्राण देखना।
देखना एक दिन उर्वरा मिट जायेगी,
विकास खुद को ही मौत लायेगी देखना।।
सावनो की बहारें मिलेगी सदा,
बरखा की फुहारें मिलेगी सदा।
पेड़ ना गर कटे धन्य हो जायेगें,
फिर धरा पर नजारे मिलेगी सदा।
ये चमन आपका, ये वतन आपका,
तुम सँवारो इसे, ये जतन आपका।
सब के जीवन सुखि, कामनायें रहे,
इसको स्वर्ग करो, ये चमन आपको।।
संजय भारती
खेती आदिबद्री चमोली
उत्तराखंड