“ए मेरे भारत वर्ष…..”
“ए मेरे भारत वर्ष…..”
बीत गए दिन,
महीने, दशक कितने
दस दस साल के
बिगड़ी बना लो अब तो
चरित्र को संभाल के।
ए मेरे भारत वर्ष, आंधियों ने
उड़ाई धूल जो इतिवृत्त में
मचाई गंद इतिवृत्त में
अपसरित हो अब तो
सदियों के शास्त्र ज्ञान से।
ए मेरे भारत वर्ष,
बिगड़ी बना लो अब तो
चरित्र को संभाल के
तत़्वज्ञान धर्म का
नामोनिशान
मिट सा गया है ,
जान लो उसे
तलाश के।
ए मेरे भारत वर्ष,
बिगड़ी बना लो अब तो
चरित्र को संभाल के
जान लो भोज्य क्या है ,
और क्यों है ?
जान लो
सत रज तम
के प्रभाव को
बिगड़ी बना लो अब तो
स्वयं को संभाल के
जान लो
भोग्य क्या है,
और क्यों है ?
जान लो
उचित इस्तेमाल को
बिगड़ी बना लो अब तो
स्वयं को संभाल के
संयम अतुल है
गुण ही नहीं वो
गुण का खजाना ।
पा लो उसे,
संभालो उसे
बिगड़ी बना लो अब तो
चरित्र को संभाल के
क्या है चाबी,
कहां है चाबी ?
गुणों के खजाने की
खोज लो शास्त्र में
सद्गुरु के चरण में
ए मेरे भारत वर्ष,
बिगड़ी बना लो।
संभालो,बालपन से संभालो
दुलार के संभालो
धर्म की आड़ में संभालो
शिक्षा के ब्याज से संभालो
पौध सा सींचो,
परिष्कृत कर डालो
ए मेरे भारत वर्ष,
बिगड़ी बना लो।
छोड़ कर एश औ आराम
कुछ काम भी,
नजर डालो,नजर डालो।
बिगड़ी बना लो अब तो
चरित्र को संभाल के
ए मेरे भारत वर्ष,
बिगड़ी बना लो।
अक्षयलता शर्मा