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मां के हाथों से बना खाना

मां के हाथों से बना खाना

याद आते हैं बचपन के वो दिन मां बनाती थी जब स्वयं अपने हाथों से खाना
शाला से शाम को भाग कर आना और मां का अपने हाथ से वह खाना खिलाना
उंगलियां चाटते रह जाते थे मन आत्मा हो जाती थी तृप्त
क्योंकि प्यार ममता, अपनत्व की उसमें से आती थी महक ।।
नसीबवान होते हैं वह जिन्हें मिलता है मां के हाथ का बना खाना
वरना पूछो उन मासूमों से जिनके सिर पर नहीं होता मां का साया।
होता है प्यार मां के बने खाने में कहां आएगा वह मजा फाइव स्टार होटल के खाने में
जन्नत का सुख भी न्योछावर है, ममतामई मां के खाने में।।
याद आते हैं बचपन के वो दिन होली, दिवाली में जब बनते थे भांति भांति के व्यंजन
बांध तारीफों के पुल मां के आनंद लिया करते थे।
रहते थे कोसो दूर शहर में,करते थे पढ़ाई परंतु वहां भी हम दोस्तों में करते थे मां के हाथ के बने खाने की बड़ाई।।
याद आते हैं बचपन के वो दिन मां बनाती थी जब स्वयं अपने हाथों से खाना
शाला से शाम को भाग कर आना और मां का अपने हाथ से वह खाना खिलाना
उंगलियां चाटते रह जाते थे मन आत्मा हो जाती थी तृप्त
क्योंकि प्यार ममता,अपनत्व की उसमें से आती थी महक ।।
नसीबवान होते हैं वह जिन्हें मिलता है मां के हाथ का बना खाना
वरना पूछो उन मासूमों से जिनके सिर पर नहीं होता है मां का साया।
होता है प्यार मां के बने खाने में कहां आएगा वह मजा फाइव स्टार होटल के खाने में
जन्नत का सुख भी न्योछावर है, ममतामई मां के खाने में।।
याद आते हैं बचपन के वो दिन होली, दिवाली में जब बनते थे भांति भांति के व्यंजन
बांध तारीफों के पुल मां के खूब आनंद लिया करते थे।
रहते थे कोसो दूर शहर में,करते थे पढ़ाई परंतु वहां भी हम दोस्तों में करते थे मां के हाथ के बने खाने की बड़ाई।।

शिशिर देसाई
सनावद(मध्य प्रदेश)

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