झूठ बोले कौवा काटे…
झूठ बोले कौवा काटे…
(30 अप्रैल- राष्ट्रीय ईमानदारी दिवस )
वरिष्ठ पत्रकार साधना सोलंकी जयपुर राजस्थान से
बांछे खिल गई यह जानकर
सत्य बोलने के लिए भी एक दिन मुकर्रर है और वह है तीस अप्रैल!
भई वाह! अप्रैल माह का भी अंदाज निराला है। भला हो द बुक आफ लाइज, फिब्स, टेल्स, स्कीम्स, स्कैम्स, फेक्स एंड फ्राड्स, दैट हैव चेंज द कोर्स आफ हिस्ट्री एंड इफेक्ट अवर डेली लाइव्स के लेखक हिरश गोल्डबर्ग का जिन्होने झूठ के जश्न(पहली अप्रैल) के जवाब में माह के अन्तिम दिन को 1990 के दशक में सच्चाई के जश्न के नाम कर दिया। फूल यानि झूठ को संतुलित करने उन्हें यह जरूरी लगा!
👉पलड़ा झूठ का भारी
यानी मान लिया कि साल में तीन सौ चौंसठ दिन झूठ का पलड़ा भारी है, एक दिन निरीह सत्य के नाम ही सही! निरीह इसलिए कि बलि का बकरा एक ही दिन को बनेगा, शेष दिन तो झूठ के नाम हैं!
👉झूठ बोले कौवा काटे…
काले कौवे से डरियो!
यह बोल भी अनायास इस दिवस पर याद आ रहे हैं। दरअसल अब काटने को कौवे भी अपने देश में दुर्लभ जीव हो चले हैं। श्राद्घ पक्ष में मुंडेर पर कौआ दिख जाए तो यह भी जश्न से कम नहीं। बहरहाल यह कल्पना का विषय है कि इस एक दिन सच बोलने को किसका जिगरा कितना बड़ा है!
👉गौर फरमाएं…
👉कितने ईमानदार और संवेदनशील हैं आप झूठ और सच को लेकर…?
👉आटे में नमक जितना झूठ जीवन को रसमय बनाता है…पर इसका उलट त्राहिमाम का नाद है।
👉ईमानदारी पर आलेख, संभाषण आसान है, पर व्यवहार में यह चूंचूं का मुरब्बा है!
👉ईमानदारी और बेईमानी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं और नाही कीमत…ठीक वैसे ही जैसे सुख के बिना दुख बेमानी है और दुख को जाने बिना सुख की कोई औकात नहीं!
👉ईमानदारी के संदर्भ में चलते चलते गौर फरमाएं…
एक पति उतना भी बुरा बेईमान नहीं होता, जितना उसकी पत्नी समझती है और बेशक उतना अच्छा ईमानदार भी नहीं, जितना उसकी मां समझती है…!
यक्ष प्रश्न फिर वहीं कि फिर वह वास्तव में है कैसा…
तो जनाब इसका जवाब उसके मित्र बेहतर दे सकते हैं!
आशा है, अब आप ईमानदारी से लिपटी विडंबना समझ गए होंगे!