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नालायक ( लघुकथा )

नालायक
( लघुकथा )
श्यामल सिंह के चार लड़के और दो लड़कीयाॅं हैं। सभी का शादी विवाह कर के वे खुशी से जीवन व्यतीत कर रहें हैं। वे भारत सरकार के पेंशन भोगी हैं। उनका मुख्य चिंता संझला लड़का शक्ति सिंह है। बड़ा लड़का अपने परिवार के साथ राज्य के मुख्यशहर में बस गया है। वह राजनीतिक और अपने कार्य में इतना व्यस्त रहता है कि घर गाॅंव बिलकुल ही नहीं आता। वह आता भी है तो अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए और अपनी हिस्सा पर हक जताने के लिए।मंझला लड़का अपनी नौकरी पेशा और परिवार की जरूरत के अनुसार शहर-शहर भटकता रहता है। वह बीच-बीच में गाॅंव आता जाता रहता है। छोटा लड़का अपनी नौकरी के अनुसार देश के बड़े शहर में बस गया है। वर्ष दो वर्ष पर एक दो बार एक दो दिन के लिए आता है। वो भी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हीं आता है। उन दो दिनों में भी वह उन लोगों के साथ गुजारता है जहाॅं उसकी बनती है। जहाॅं उसे कोई रोकने टोकने वाला नहीं है सभी हाॅं में हाॅं मिलाते हैं। दोनों लड़कियाॅं भी अपने अपने घर-परिवार में व्यस्त हैं। वो भी कभी कभार हीं आतीं हैं। वो भी अपनी अपेक्षाओं के साथ।
श्यामल सिंह और उनकी पत्नी संझला लड़का शक्ति सिंह के साथ अपने गाॅंव में रहते हैं।
श्यामल सिंह अपने संझला लड़का का उप नाम नालायक रख दिये हैं। वह उनके साथ गाॅंव में ही रहता है। वह अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता है। ऐसा नहीं की वह जीवन यापन के लिए कोई रोजगार नहीं किया ? वह जीवन यापन के कई उद्यापन किये पर उसे हर जगह असफलता ही मिली।
इन सब बातों के कारण श्यामल सिंह हर समय उसके भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। जहाॅं भी उसकी चर्चा होती है या कोई कार्य करने के लिए भी उसे कहते तो उसे नालायक हीं कहते। वह उसे नालायक के नाम से ही उसे बुलाते।
एक दिन अचानक श्यामल सिंह की तबियत बहुत बिगड़ जाती है और उन्हें आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। उनके तीनों बच्चें और दोनों बच्चियों में से कोई समय पर नहीं पहुंच पाया । सभी का अपना-अपना रोना है। शक्ति सिंह और उसके दोस्त इनकी सेवा में दिन रात तत्पर रहे। उपचार के लिए जो भी दवा दारू लाना हो, जाॅंच के लिए जहाॅं ले जाना हो, ले जा रहे हैं। एक सप्ताह के बाद उन्हें कुछ होश आया कुछ अच्छा महसूस करने लगे तो देखा शक्ति सिंह पहले से बहुत कमजोर हो गया है और चिंतित भी है। पिता को होस में आया देख शक्ति सिंह वार्ड से बाहर निकल कर दरवाजे के ओट में खड़ा हो जाता है। उसे जाता देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा नालायक कहाॅं जा रहा है ? पत्नी उनसे शिकायत के लहजे में कहती है अब तो कुछ सोचिए अगर यह नहीं रहता तो आप आज जीवित भी न बचते। उसके दोस्तों ने रक्त की व्यवस्था से लेकर तत्काल पैसा की व्यवस्था की है और आप इसे नालायक कर रहे हैं ? शक्ति सिंह बाहर दरवाजे की ओट से सब सुन रहा होता है। श्यामल सिंह कहते हैं, ऐसी बात नहीं कि मैं इससे नफरत करता हूॅं । मैं इसके भविष्य को सोच कर चिंतित रहता हूॅं , पर अब मैं इसको इसके नाम से भी नहीं बुला सकता, न इसे गले लगा सकता हूॅं , इस पर गर्व भी नहीं कर सकता । जैसा हमने अन्य बच्चों पर किया, सोचता हूॅं , कहीं यह भी उनके जैसा हमसे दूर ना हो जाए। आपने आप में व्यस्त न हो जाए। इसलिए मेरा यह नालायक ही ठीक है। इतनी बात सुनते हीं शक्ति सिंह अंदर आता है और तीनों मां बेटे गले गलकर सुबकने लगते हैं और श्यामल सिंह कहते हैं मेरा नालायक ही ठीक है। मेरा नालायक ही ठीक है। सभी को ऐसा नालायक बेटा हो।

नरेन्द्र कुमार
बचरी , अखगाॅंव , संदेश भोजपुर (आरा) बिहार-802161

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