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माँ होने के नाते मैं अक्सर चिंतित रहती थी

अमल
……….

माँ होने के नाते मैं अक्सर चिंतित रहती थी कि बेटे को कोई गलत आदत न लग जाए।
इस क्रम में अच्छी कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग और कविताएँ आदि उसे सुनाती ही रहती थी।
बिना कहानी सुने तो वह खा
ना खाता ही नहीं था, जिससे मुझे भी मौका मिल जाता था।

मैंने उसे कहानी के माध्यम से भरपूर कोशिश करती थी कि वह अच्छी बातें सीखे। उसे अपने जीवन में शामिल करे।
प्रत्येक विषय पर मै उसे बिल्ली, कुत्ते, खरगोश आदि पात्रों के द्वारा नैतिक शिक्षा देने की कोशिश करती थी।
जैसे किसी का चीज बिना पूछे लेना चोरी होती है, किसी से भी पैसा भी लेना बुरी बात है, बड़ो का आदर करना, रोज स्कूल जाना आदि आदि।
(जितनी कहानियाँ मै उसे बना बना कर सुनाती थी उसे सुरक्षित रखी होती तो आज एक बाल कहानियों का संग्रह छप जाती😁)

चुपके से उसकी दिनचर्या पर भी नज़र रखा करती थी।
स्कूल से आने के बाद समान्यतः उसका बैग भी देखना ही होता था।
सब कुछ ठीक ही चल रहा था।
एक दिन मै उसे कहानी सुना कर खाना खिला रही थी। उस दिन का टाॅपिक “ठगना” था।
कैसे बिल्ली को अपने दोस्त को ठग लिया तो उसे कितना पछताना पड़ा, आदि

मैने महसूस किया कि मेरा छह बर्षीय बेटा थोड़ा असहज हो गया और फिर वह प्रश्न पूछने लगा कि “मम्मी यदि बिल्ली माफी मांग लेती तो उसे पछताना नहीं पड़ता? गलती करने के बाद कोई उपाय नहीं है मम्मी? ”
हलांकि कहानी सुनाते समय वह अक्सर कई सवाल करता था पर आज वह परेशान सा दिख रहा था।
मैंने उससे पूछा कि क्या बात है बेटा?
कुछ हुआ है तो मुझे बता सकते हो।
हम मिलकर समाधान ढूंढ लेंगे।
थोड़ा जोर देने पर उसने जो बताया वह इस तरह था
मम्मी…वो..विराज न.. इक्जाम में एन्सर बताने के लिए रिक्वेस्ट कर रहा था,
मैंने मना कर दिया….

अच्छा…. फिर??

तो उसने कहा कि बताओगे तो पैसे दूंगा।
मैंने नहीं मांगा मम्मी….उसने दिया.

तो???

मैंने ले लिया।

अच्छा!!!
पर तुम्हारे बैग में तो कोई पैसे नहीं थे?

मम्मी साॅरीईईईईईई

तुमने लौटा दिए न?

मम्मी… थोड़ी देर रूक कर उसने बताया।
मैंने बैग में पैसे रखे थे,
घर लौटते समय मुझे लगा कि मैंने गलत किया है। आपको लगेगा कि मैंने चोरी की है।
तो मैंने एक एक सिक्का एक एक कर के रास्ते पर फेकते हुए आया हूँ मम्मी” डरते हुए उसने बताया। मैंने उन पैसों को अपने पास नहीं रखा।

उसने जो बताया उसे सुनकर मुझे लगा कि मैंने अपने बच्चे को जो भी सिखाया है वह उसपर अमल करना तो उसने चाहा पर उसका तरीका उसे समझ नहीं आया।

मै थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गई।
फिर मैंने बेटे को गोद में लिया।
पर बेटा पैसा फेक देने से, जिसने पैसा दिया उसे तो वापस नहीं मिला।
उसका तो नुकसान हो ही गया।
अब वह सोच में पड़ गया।

मैंने उसे प्यार से समझाया।

बेटा यदि आपको लगा कि वो गलत काम था तो आप मुझे बताते। अपनी गलती मान लेने से बडी कोई बात नहीं।

अब क्या करुँ मम्मी?
उसने मासुमियत से पूछा।

आप कुछ ऐसा करो कि विराज का नुकसान न हो और आपकी गलती भी सुधर जाए।

हाँ मम्मी…वह उछल कर बोला।
एक उपाय है।
बुआ ने मुझे जाते समय जो रुपये दिए थे उसमें से मै विराज को लौटा दूंगा।

ठीक है वो तुम्हारे पैसे हैं तुम सोच लो ….
खुद के लिए खर्च करना है ,चाकलेट खानी है, खिलौने लेने हैं या उससे अपनी गलती सुधारनी है। मैंने बनावटी लापरवाही दिखाते हुए कहा।

नहीं मम्मी मुझे चाकलेट नहीं खानी। खिलौने भी नहीं लूंगा । मै विराज को उसके पैसे वापस कर दूंगा। उतावलेपन से उसने कहा।
मै खुश थी।
मुझे संतोष हुआ कि वह सीख पर अमल करना सीख रहा है।है।

गीता राज

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