नव सृजन की मधुमय मंगल बेला में हम नववर्ष मनाते हैं
नव सृजन की मधुमय मंगल बेला में
हम नववर्ष मनाते हैं
स्पंदन होता बीजों में, अंकुर बन वे
उग आते हैं!
उर्वरता धरती से लेकर, वे तरुवर बन जाते हैं!!
उनके शीतल छाॅह तले सब,जीव जंतु सुख पाते हैं!
अल्हड़पन की मद मस्ती में, फगुहारे फाग सुनाते हैं!!
नवसृजन की मधुमय मंगल बेला में हम नव वर्ष मनाते हैं!
कठिन परिश्रम कर किसान सब अपनी थकन मिटाते हैं!
आम्र डाल पर बैठी कोयल कूॅ कूॅ
स्वर लहराती है!!
महक उठे बौराई बगिया देख ललच रह जाते हैं!
फूलों की भीगी सुगंध से स्वसन रंध्र
भर जाते हैं!!
नवसृजन की मधुमय मंगल बेला में हम नववर्ष मनाते हैं!
प्रकृति सजाती लता वल्लरी वन
उपव गिरि आंगन में!
खेतों में फसलें लहराती हरियाली
के रागन में!!
फागुन की रंग रंगीली धरती दुल्हन सी सज जाती है!
स्नेह सुधा छलकाती धूप नशीली सी
अनुरागन में!!
नवसृजन की मधुमय मंगल बेला में हम नववर्ष बनाते हैं!
चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष में नव संवत्सर लहराए!
बरबस पायल छमक उठे महुआरी मरकता छाए!!
राग रंग की मस्ती में लो सभी दिशाएं दमक उठी!
सृष्टि सृजन ब्रह्मा ने की सारी वसुधा चमक उठी!!
अह्लादित हो ‘जिज्ञासु’ जन चैती नव वर्ष मनाते हैं!
सत्य स्नेह भाई चारा का निश दिन अलख जगाते हैं!!
स्पंदन होता बीजों में अंकुर बन वे
उग आते हैं !
नव सृजन की मधुमय मंगल बेला में
नववर्ष मनाते हैं !!
कमलेश विष्णु जिज्ञासु
9140896333
9454348606