भचर-भचर भड़काऊ भाषण से भाईचारा तोड़ रहे हैं नेताजी ।
भचर-भचर भड़काऊ भाषण से भाईचारा तोड़ रहे हैं नेताजी ।
चुनाव दर चुनाव जनसेवा और तरक्की की दुहाई देकर,
नींबू की तरह जी-भरकर जनता को निचोड़ रहे हैं नेताजी ।
काम-धाम कुछ नहीं, घूम-फिरकर हर बार की तरह
जाति-बिरादरी की इकाई ,दहाई सैकडा जोड रहे हैं नेताजी।
जनता जाए भांड में, लोक-लाज कानून रख कर ताख़ पर,
भचर-भचर भड़काऊ भाषण से भाईचारा तोड़ रहे हैं नेताजी।
सूझ-बूझ ,समझदारी, काबिलियत , कर्मठता से कोसों दूर है
पर हर समस्या का ठीकरा एक दूसरे पर फोड रहे हैं नेता जी ।
अपना चेहरा चमका रहे है कमीशन वाली मलाई खूब चाभकर,
मंहगाई भ्रष्टाचार बढाकर जनता की कमर तोड़ रहे हैं नेता जी।
नकली मुद्दा ,नकली नारा, झूठे बोल बोल गिरगिटिया चाल,
जरूरी, जमीनी और बुनियादी मुद्दों से मुंह मोड़ रहे हैं नेताजी।
चुनाव आते ही मेघा की तरह उपरा गये लाव-लस्कर लेकर,
घड़ियाली ऑसू चौखट-चौखट फिर हाथ जोड़ रहे हैं नेता जी।
हर बार की तरह जनता को अनपढ़, गँवार , मूर्ख समझकर,
फिर लम्बे-लम्बे वादों का गुब्बारा फुलझड़ी छोड़ रहे हैं नेताजी।
टिकट ले लिए दौलत से,जी-हूजूरी या जोड-तोड का खेल कर,
फिर गाँव-गाँव गली-गली हर पुरानी पगडंडी दौड रहे हैं नेताजी।
मनोज कुमार सिंह
लेखक/साहित्यकार/उप-सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका