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चुनावी गीत

चुनावी गीत

बादल चुनाव के जब भी छाए।
देश में वादों की बाढ़ सी आए।

घोषणाओं की घनघोर घटा,
भाषणों की इंद्रधनुषी छटा,
कर्सी लोलुप मेढ़क ये टर्राए।
बादल चुनाव के जब भी छाए।

नारे बैनर झंड़ों की हरियाली,
चमचों के चेहरे पे खुशहाली,
कोल्हू के बैल सा दौड़ लगाए।
बादल चुनाव के जब भी छाए।

पहन पैजामा कुर्ता खादी का,
लगा मुखौटा नेहरु गाँधी का,
तारें दिन में जनता को दिखाए।
बादल चुनाव के जब भी छाए।

कर जोड़ कुर्सी का माँगे वरदान,
कहें कुर्सी है मेरा धर्म ईमान,
पाँच साल फिर वो मुख न दिखाए।
बादल चुनाव के जब भी छाए।
देश में वादों की बाढ़ सी आए।

डॉ. कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक- भाटापारा छत्तीसगढ़

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