क्यों मनाते होली
क्यों मनाते होली
किस्सा यह सतयुग का, होली त्योहार के आरंभ का।
हिरण्यकश्यप नामक दैत्य, शत्रुता किया प्रभु से था।
पुत्र था उसका प्रहलाद, था श्रीहरि का परम भक्त।
विनाश हेतु वह उसके ,अपनाता था हथकंडे शख्त।
बहन थी एक चहेती उसकी, होलिका उसका नाम।
की थी ब्रह्मा जी की वह, तपस्या करने का बड़ा काम।
मिला वरदान ब्रह्मा जी से,अग्नि नहीं जला पाएगा।
प्रहलाद को देख सोची, वरदान काम अब आएगा।
गोद में बैठा प्रहलाद को, बैठ गई वह लकड़ियों पर।
बोली “लगा दो आग, जाएगा भाई का शत्रु यह मर।”
प्रभु का भक्त प्रहलाद, जपने लगा प्रभु जी का नाम ।
वरदान ब्रह्मा जी का नहीं आया, होलिका का कोई काम।
पर अहित के भाव के कारण, जली होलिका धू- धू कर।
शंका जताने लगी अब वह, ब्रह्मा जी के वरदान पर।
प्रकटे ब्रह्मा जी बोले, “तुम्हारे रक्षार्थ था मेरा वरदान।
पर अहित के भाव के कारण, नष्ट हो गया उसका मान।”
जीत हुई प्रभु भक्त की, झूम उठे पूरे प्रभु भक्त गण।
परमानंद में समाकर वे, रंगे फिर एक- दूजे का तन।
मनाएं जाने लगा फिर, उसी समय से होली त्योहार।
खेल कर रंग- गुलाल सब, जताने लगे आपसी प्यार।
श्रीमती सुमा मण्डल
वार्ड क्रमांक 14 पी व्ही 116
नगर पंचायत पखांजूर
जिला कांकेर छत्तीसगढ़
पिन कोड 494776