नारी नए युग का तुम निर्माण करो
नारी नए युग का तुम निर्माण करो
उठो नारी, ‘नए युग का तुम निर्माण करो’।
तुम शक्ति स्वरूपा, तुम स्वयंसिद्धा।
अब तुम को ही स्वयं स्नेह रस से,
नए युग के भवन की नींव भरनी है।
आज तुम्हारे रूप का तेज फिर दमके।
नए निर्माण से पहले पुरातन को बदलो।
जीवन जिस पथ पर हुआ तुम्हारा बरबाद,
तोड़ो बेड़ियाॅं तुम सबला हो निर्भीक बनो।
तृषित है मानवता जग करता विलाप।
तुम स्वयंसिद्धा हो, युगांतर चेतना की।
अपने करुण वात्सल्य से जग पीर हरो,
उठो नारी, ‘नए युग का तुम निर्माण करो’।
तुम त्याग की मुस्कान, धर्म की पहचान।
दु:ख सहन, आतिथ्य सेवा, सुख का भान।
दे रही अनुदान, सबका करो अब परित्राण,
नारी जाति का तुम कर लो समग्र विकास।
तुमको अब जग के कण कण में भरनी है।
सौहार्द से प्लावित इस मानव हृदय को,
अब अमृत मिले, सिर्फ़ सुधा सौजन्य का।
जिएँ सब सुख शांति विश्वास आस्था में।
आज तुम्हें पहला दीप प्रज्वलित करना है।
कंगूर और दीवारें भी तुम बहुत गढ़ चुकी हो।
तुम हो भवन की नींव बनी तुम स्वयंसिद्धा,
उठो नारी, ‘नए युग का तुम निर्माण करो’।
डॉ. सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार