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हिन्दी की अनिवार्यता

हिन्दी की अनिवार्यता

बहुभाषी है हिंदी जिसको , हमको आगे करना है ।
राष्ट्रभाषा हो हिंदी अपना, मिलकर सबको कहना है ।।

हिंदी वार्तालाप ना हुआ, समझ नहीं हम पाते हैं ।
अपने ओछेपन का कोई , अन्य लाभ उठाते हैं ।।

अदालत में जाकर हम सब, ठगा हुआ सा रहते हैं ।
केस हमारा घटना अपना, समझ नहीं हम पाते हैं ।।

निज जीवन से जुड़े हुए सब, बातें हमें समझना है ।
राष्ट्रभाषा हो हिंदी अपना, मिलकर सबको कहना है ।।

अधिवक्ता कोई बहस हमारा, अंग्रेजी में करते हैं ।
जज भी उनसे ऐसा ही कुछ, शब्दों से ही कहते हैं ।।

अंत समय जब फैसला होते , हमको वो बतलाते हैं ।
हार जीत की जजमेंट को , पढ़ भी ना हम पाते हैं ।।

ऐसे रीति चला हुआ जो ,हम सबको समझना है ।
राष्ट्रभाषा हो हिंदी अपना, मिलकर सबको कहना है ।।

डॉक्टर दवाई लिख देते ,समझ नहीं कुछ आता है ।
दवाई की दुकान वाले ,फायदा इसका उठाता है ।।

हानि और क्या लाभ दवा से,कोई नहीं बतलाता है ।
अंग्रेजी जो पढ़े लिखे हैं, समझ वही बस पाता है ।।

जो बातें हैं समझ ना आता, वह तो हमें समझना है ।
राष्ट्रभाषा हो हिंदी अपना ,मिलकर सबको कहना है ।।

अदालत हो बैंक सभी में , हिंदी में सब काम करें।
संदेश या पत्र सभी पर , हिंदी में ही लिखा रहे ।

तभी जान पाएंगे हम सब ,क्या कुछ किसमें लिखना है ।
लेनदेन दवाई पर्ची ,सब कुछ हमें समझना है ।।

हर व्यक्ति से मेल-जोल में, हिंदी ही अपनाना है ।
राष्ट्रभाषा हो हिंदी अपना, मिलकर सबको कहना है ।।

बसन्त कुमार “ऋतुराज”
अभनपुर

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