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बचपन के खेल

बचपन के खेल

खेलें बचपन के खेल, आज कुछ यूँ मस्ती हो जाए,
बारिश में भीगें, काग़ज़ की कश्ती भी चलती जाए,,

पकडें फिर गिल्ली-डंडा, कब्बडी भी संग हो जाए,
पढ़ने का हम नाम न लें, डाँट तो रोज़ पड़ ही जाए,,

रात को जुगनू पकड़ें, भूतों की कहानी तुम्हें सुनाएँ,
छत पर बैठ फिर तारे गिनें, चाँद पर परियाँ दिखाएँ,,

ज़िन्दगी की दौड़ में, क्यों आगे ही यूँ दौड़ते हम जाएँ,
आओ, कुछ पल ठहर कर, कुछ मस्ती हम कर जाएँ,,

जाते हुए लम्हे अजनबी से, मुट्ठी में बस सिमट जाएँ,
वक्त के साथ मेरी भी, कुछ पल की दोस्ती करा जाएँ,,

खो गए हैं हम कुछ ऐसे, बादल उदासी के छा जाएँ,
भूलकर परेशानी, बचपन के जैसे फिर मस्त हो जाएँ।

– पूजा सूद डोगर ‘काव्या’

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