चलो न्याय हम दिलाए
चलो न्याय हम दिलाए
बहुत सह चुकी तुम सबकी मनमानी |
तुम्हारी दिल की पीड़ा कब किस ने हैं जानी |
यहाँ तो हैं अंधेर नगरी और सबकी नीयत में बेईमानी |
अब जब ऊँची उड़ान भरने की तुमने हैं ठानी |
तब तो तुम्हें ही बनना होगा खुद झांसी की रानी |
‘कृष्ण’ सा न कोई यहाँ जो लाज बचाने आएगा |
जब भी देखो तुम खुद को किसी जाल में फंसता |
उस पल न विचार कर काली का रूप तुम धारण करना |
दरिंदो के बढ़ते हाथों को तुम तोड़ कर रख देना |
वरना दरिंदे यूँ ही खुलेआम घूमते रहेंगे |
कोई कानून तुम्हारे साथ इंसाफ न कर पाएगा |
बेटियों की तबाही होने पर माँ का दिल छलनी हो जाएगा |
कैसा यहाँ छाया है अंधकार |
बेटियों को है बस अब ऐसे कानून का इंतजार |
जब दरिंदो के शरीर के टुकड़ो को समेटता फिरे उसका परिवार |
चलो यह नया कानून हम लाए जैसे को तैसा नियम बनाए |
दरिंदो को क्यों न सबक अब सिखाए |
ताकि उनकी रूह कांप जाए |
दोबारा वही गलती वह न दोहराए |
अपनी बहन-बेटियों को न्याय हम दिलाएं |
ताकि नजर न आए कहीं भी विकास के दामन मे वेदनाएं ||
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)