( प्रेमचंद जयंती विशेष ) मुंशी प्रेमचंद की प्रासंगिकता
( प्रेमचंद जयंती विशेष )
मुंशी प्रेमचंद की प्रासंगिकता
प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936). हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे। उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचन्द के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरत चंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें ‘ उपन्यास सम्राट ‘ कहकर संबोधित किया था। प्रमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव डाली।
जीवन वृत्त और कार्य क्षेत्र :- प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायब राय था। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता और चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहांत हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार महज 15 साल की उम्र में हुआ जी सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से काफी प्रभावित रहें जो उस समय बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल – विधवा शिवरानी देवी से किया।
कार्य क्षेत्र :- प्रेमचंद हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। उनकी कई कलजयी रचनाओं ने गोदान , कफन , इत्यादि प्रमुख थी। प्रेम चंद की रचना दृष्टि विभिन्न साहित्यिक रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न प्रेमचंद उपन्यास , कहानी , समीक्षा , लेख , संपादकीय , संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की श्रृष्टि की। उन्होंने कुल 15 उपन्यास , 300 से भी अधिक कहानियां , 3 नाटक , 10 अनुवाद , 7 बाल पुस्तकें तथा हजस्तों पृष्ठों के लेख संपादकीय , भाषण , भूमिका , पत्र आदि की रचना की। हम उन्हे आज कृतज्ञ रूप से सादर नमन करते हैं।
आशीष अम्बर
शिक्षक
जिला :- दरभंगा – बिहार