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न जाने किसका इंतज़ार —

न जाने किसका इंतज़ार —

चलों सुधारें कर्म लेखनी, जग मंगल‌ की पले भावना।
संग चले कर्मों का लेखा, शुचि कर्मों की करें साधना।।

सदा बसेरा नहीं किसी का, मिले धूल में महल-दुमहलें।
जगमग दुनिया चार दिनों की, छूटें सारे मेले-ठेले।
मैं मेरा में उमर गँवाई, मन परहित की करें कामना।
संग चले कर्मों का लेखा, शुचि कर्मों की करें साधना।।

वृक्ष नदी जड़ चेतन पृथ्वी, परहित ही इनका मूल मिला।
बिना स्वार्थ के देते मानव, पथ से इनके सब शूल हटा।।
मानवता पोषित तब होगी, भू से वृक्ष न कभी काटना।
संग चले कर्मों का लेखा, शुचि कर्मों की करें साधना।।

पड़ा-पड़ोसी भूखा तेरा,‌ फिर तूने रोटी खाई क्या?
कहीं किसी घर देख अँधेरा, उस घर में जोत जलाई क्या??
परहित जैसा धर्म न दूजा, रख पल्ले से गाँठ बाँधना।
संग चले कर्मों का लेखा, शुचि कर्मों की करें साधना।।

इंतज़ार में समय न खोना, बीते कल की अब बात न कर।
मानव जीवन व्यर्थ गँवाया, छल द्वेष कपट की घात न कर।।
गंगा सा निर्मल तन-मन हो, करें सत्य का सदा सामना।।
संग चले कर्मों का लेखा, शुचि कर्मों की करें साधना।।

सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।

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