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गुरु (समाधिस्थ श्री विद्यासागर जी महाराज)

गुरु
(समाधिस्थ श्री विद्यासागर जी महाराज)

चहुंओर संसार में भोग विलासिता जिसमें फैली थी ,
क्या श्रावक की क्या साधु की चर्या किंचित मैली थी,
ऐसे कठिन काल में गुरूवर ने दीक्षा धारण कर ली,
नव यौवन में महावीर सी आपकी चर्या शैली थी !!
मोक्षमार्ग के दर्शायक सच्चा स्वरूप ये तुम्हारा है,
ऐसे गुरूवर विद्यासागर को वंदन नंत हमारा है !!

यशोकीर्तियां नितप्रति जिनकी सूर्य रश्मियां गाती हैं ,
चरण पड़े जिस माटी पर वो स्वयं कृतार्थ हो जाती हैं ,
उपमायें जिनसे जुड़कर खुद को ही निख़ार लेती हैं ,
दसो दिशाएं हर्षित हों जिनको अंबर पहनाती हैं !!!
मोक्षमार्ग के दर्शायक सच्चा स्वरूप ये तुम्हारा है,
ऐसे गुरूवर विद्यासागर को वंदन नंत हमारा है !!

इंद्रधनुष भामण्डल तेरा चंवर हवाएं ढुराती हैं
शशि रवि सम दीपक ले प्रकृति आरती तेरी गाती है |
नभ बन जाता छत्र तुम्हारा ग्रह प्रदक्षिणा देते हैं
मां भारती यशोगाथा गा अपना मान बढ़ाती हैं |
मोक्षमार्ग के दर्शायक सच्चा स्वरूप ये तुम्हारा है,
ऐसे गुरूवर विद्यासागर को वंदन नंत हमारा है !!

पर इन सबसे निस्पृह हो तुम आत्म ध्यान किया करते,
निर्मोही हो बाहुबलि ना तन पर ध्यान जरा धरते,
वीतरागी ये छवि तुम्हारी भक्तों को मन भाती है
कर्म शत्रु सब जीत रहे सो आत्म बलि भी कहा करते |
मोक्षमार्ग के दर्शायक सच्चा स्वरूप ये तुम्हारा है,
ऐसे गुरूवर विद्यासागर को वंदन नंत हमारा है !!

शीश झुकाकर तुव चरणन में यही भावना हम भाएं,
तुम सम हम भी मोक्षमार्ग में निराबाध चलते जाएं,
मोह कषाय की विषबेलों से अब तक तो हम जकड़े हैं,
बाहुबलि बन जाएं यहां सभी कर्म के बंधन कट पाएं |
मोक्षमार्ग के दर्शायक सच्चा स्वरूप ये तुम्हारा है,
ऐसे गुरूवर विद्यासागर को वंदन नंत हमारा है !!

विरेन्द्र जैन नागपुर

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