सनातन धर्म के रक्षार्थ एवं मानवता के हित संत तुलसीदास जी का श्रीराम चरित मानस एक परिपूर्ण राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक एवं मानवता के लिए अति मूल्यवान संविधान है।
सनातन धर्म के रक्षार्थ एवं मानवता के हित
संत तुलसीदास जी का श्रीराम चरित मानस एक परिपूर्ण राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक एवं मानवता के लिए अति मूल्यवान संविधान है।
बक्सर, १०/अगस्त/२०२४, कवि कूल चूड़ामणि संत तुलसीदास दास जी की जयंती की पूर्व संध्या पर___ भोजपुरी दुलार मंच एवं प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा, भारत के क्रमशः__ राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सलाहकार डॉ ओमप्रकाश केसरी पवननन्दन, साहित्यकार, मरणोपरांत देहदानी ने एक विशेष विज्ञप्ति के माध्यम से समस्त मानव जाति के लिए, सम्पूर्ण मानवता के लिए अपनी बातों को साझा करने का प्रयास हम सभी के लिए कियें हैं
अपनी बातों की सिलसिला के अन्तर्गत बताये कि इस घरती भगवान की इच्छा के बिना कुछ भी होना असम्भव है.
श्री राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी को , संत तुलसीदास जी बनाने में उनकी धर्म पत्नी रत्नावली की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है, अगर वह अपने पति को शारीरिक मायामोह पडकर भरी बरसात अपनी पत्नी से मिलने पहुंचे और वहीं उनको पत्नी की उठेक्षा का शिकार होना पडा, उलाहना और ताना सुनने को मिला कि जितना प्रेम आप इस नश्वर शरीर से करते हैं,इसके बजाय आप सृष्टि के नियंता भगवान श्री राम से करते तो मानव जीवन सफल हो जाता__ रत्नावली की चुभती हुई बातें तुलसी के मर्म को छू गई और वे उल्टे पांव लौट कर माता__पिता से हीन तुलसी दास भगवान श्री राम की भक्ति में लीन हो गये.
एक प्रेत के माध्यम से श्री हनुमान जी से भेंट हई और नींव पड गई __श्री राम चरित रचना करने की.
वर्षों की मेहनत के बाद सम्भवतः___दो वर्ष, दो महीने, छब्बीस दिन में श्री राम चरित मानस की रचना हो पायी.
इस श्री राम चरित मानस की रचना के माध्यम से बहुत बडा बदलाव समाज आने लगाअपने स्व की प्रवृति आने लगी भक्ति भावना में अतीव वृद्धि होने लगी, मध्य काल में यवनों के शासन मेंकील पडने लगे, श्रीरामचंद्र जी की विशेषताओं को समझकर लोगों ने अपने आपको , देश को समाज को नये नजरिये से देखने लगे.
राष्ट्रीय, पारिवारिक ,सामाजिक, मानवीय मर्दायाओं को लोगों ने समझा,जाना,माना और तब भक्ति का जलवा सामने स्वत: शुरू होने लगा.
श्री राम चरित मानस की राम राज्य की कल्पना लोगों के जेहन में उतरने लगी, स्वयं महात्मा गाँधी जी ने भी मानस के राम राज्य को भारतवर्ष में पुनः स्थापित करने की बात कही, वकालत की.
श्रीराम चरित मानस केवल एक महाकाव्य नहीं रहा,वरन् वह हर भारतवासियों के लिए, अमृत ग्रंथ बन गया.
गिरमिटिया मजदूरों ने अपने साथ अपने अस्तीत्व के रूप में श्री राम चरित मानस एवं श्रीगीता जी कोसाथ में लेकर गये थे.
यह कोई कोरी कल्पना नहीं वरन वास्तविकता की पहचान थी. भारतवर्ष की आस्था थी, हमारी पहचान थी,हमारी आत्मा थी.
श्रीराम चरित मानस एक___राष्ट्रीय, सामाजिक,पारिवारिक, मानवीयता से परिपूर्ण संविधान है. हमारे भारतीय संविधान में भी इसी उद्देश की पूर्ति के रुप श्री राम चरित मानस की चित्रों को दर्शाया गया है.
मानस एक युग_बोध की तरह हम सभी का मार्ग दर्शन कराता है,और कराता रहेगा.
कोई माने या न माने मानस हर काल में हर समय मे हर व्यक्ति को हर क्षण,हर पल कोई ना कोईसीख देता रहता है,और देता रहेगा, लेने वाला,सीखने वाला ,कितना लेता और कितना सीखता है, यह उसके उपर निर्भर करता है.
मानस की लोकप्रियता का यह आलम हैकि, इसको पढने के लिए बहुतों ने हिन्दी सीखा,कितने इस पर डाक्टरेट कर लिए, कितनो को रोजगार मिल गया, काबिल बुल्के इसके दीवाने हो गये.
अति संक्षेप में श्री राम चरितमानस की उपयोगिता युगधर्म, मानव धर्म, संविधानधर्म मानवता धर्म के रुप में युगों-युगों तक सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करता रहेगा, यह हमारे उपर निर्भर करता है कि हम कितना ले पातें हैं, और किस रूप में ले पातें हैं………. बस……
जय गोस्वामी तुलसीदास दास जी महाराज,…… जय श्रीराम चरित मानस….