गीत।
गीत
क्या रहा मौसम सतत प्रतिकूल इनके,
क्या समय पर मिल न पाया खाद पानी।
बाग के माली बताओ सच हमें सब,
किस लिए गुमसुम हुई है रात रानी।।
नागफनियों ने किया आहत इन्हें या,
पतझडों ने नींद आँखों की चुराई।
आँधियों ने कर दिया घायल सुमन मन,
या कि मौसम कर रहा है बेवफाई।।
कौन इनको दे रहा है यातनाएं,
कौन इनसे छीनता है ऋतु सुहानी।
बाग के माली बताओ सच हमें सब,
किसलिए गुमसुम हुई है रात रानी।।
क्या बगावत कर रहीं बहकी हवाएं,
या दिशाएं रच रहीं साजिश निरंतर।
पश्चिमी विक्षोभ का या फिर असर है,
जो सुनाई पड़ रहे बहके हुए स्वर।।
रात – दिन उत्सव मनाती ये बहारें,
लिख रहीं क्यों आँसुओं से अब कहानी।
बाग के माली बताओ सच हमें सब,
किस लिए गुमसुम हुई है रात रानी।।
जा रही है किन विचारों में उलझती,
हाल इनका देखकर चंपा चमेली।
मोंगरा गेंदा खड़े हैं शांति पथ पर,
लुट रहे मकरंद की बनकर पहेली।।
कर रही अभिशप्त जो इस सभ्यता को,
पड़ रही वह रीति क्यों इनको निभानी।
बाग के माली बताओ सच हमें सब,
किसलिए गुमसुम हुई है रात रानी।।
राम लखन शर्मा अंकित
ग्वालियर मध्यप्रदेश